खेजड़ली बलिदान दिवस 2025: वृक्ष मेला - तिथि, इतिहास और महत्व
परिचय:
खेजड़ली बलिदान दिवस, पर्यावरण संरक्षण के लिए दिए गए एक अद्वितीय बलिदान की याद में मनाया जाता है। यह दिन उस ऐतिहासिक घटना को याद दिलाता है जब 363 बिश्नोई लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। यह घटना राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली गाँव में 1730 में हुई थी।
तिथि:
वर्ष 2025 में, खेजड़ली बलिदान दिवस 02 सितंबर को मनाया जाएगा। इस दिन, खेजड़ली गाँव में एक विशाल वृक्ष मेले का आयोजन होता है, जहाँ देश भर से पर्यावरण प्रेमी और बिश्नोई समुदाय के लोग एकत्रित होते हैं।
इतिहास:
1730 में, जोधपुर के महाराजा अभय सिंह ने अपने महल के निर्माण के लिए खेजड़ली गाँव के पेड़ों को काटने का आदेश दिया। जब सैनिकों ने पेड़ काटने शुरू किए, तो अमृता देवी बिश्नोई और उनके परिवार ने पेड़ों को बचाने के लिए उनसे लिपट गए। अमृता देवी ने कहा, "सिर सांटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण"। इसके बाद, एक-एक करके 363 बिश्नोई लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
महत्व:
खेजड़ली बलिदान दिवस पर्यावरण संरक्षण के महत्व को दर्शाता है। यह दिन हमें सिखाता है कि हमें पेड़ों और वन्यजीवों की रक्षा करनी चाहिए। यह घटना विश्व इतिहास में पर्यावरण संरक्षण के लिए किए गए सबसे बड़े बलिदानों में से एक है।
वृक्ष मेला:
खेजड़ली बलिदान दिवस के अवसर पर, खेजड़ली गाँव में एक विशाल वृक्ष मेले का आयोजन होता है। इस मेले में, विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों का प्रदर्शन किया जाता है। इसके साथ ही, पर्यावरण संरक्षण से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
निष्कर्ष:
खेजड़ली बलिदान दिवस हमें पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमें अपने पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए, ताकि हम एक स्वस्थ और टिकाऊ भविष्य का निर्माण कर सकें।