श्री गुरु जम्भेश्वर महाराज के बारे में संक्षेप जानकारी

 श्री गुरु जम्भेश्वर महाराज के बारे में संक्षेप जानकारी

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Guru Jambheshwar 



भूमिका : गुरु जम्भेश्वर महाराज यानि जाम्भोजी भगवान मुख्यतः एक महान पर्यावरणविद, समाज सुधारक, दुरदृष्टिवान, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के समर्थक व बिश्नोई संप्रदाय के निर्माता थे। उन्होंने समराथल धोरा पर भारतीय पंचाग के हिसाब से कार्तिक माह में आठ दिन तक बैठ कर तपस्या की थी। जाम्भोजी का जन्म एक राजपूत वंश के पंवार जाति के परिवार में 1451 में हुआ था, इनके पिताजी का नाम लोहट जी पंवार था तथा माता का नाम हंसा देवी था ये अपने माता-पिता की अकेली संतान थे। जाम्भोजी अपने जीवन के शुरुआती सात वर्षों तक कुछ भी नहीं बोले थे तथा न ही उनके चेहरे पर हंसी रहती थीं। इन्होंने अपने सत्ताईस वर्ष तक गायें चराते रहे। गुरु जम्भेश्वर भगवान ने चौतीस वर्षों की आयु में बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की थी। इन्होंने अपनी शिक्षा में शब्दवाणी सीखी थी, इन्होंने अपने अगले इक्यावन सालों में पूरे देश में भ्रमण कर लिया था। वर्तमान में शब्दवाणी में सिर्फ एक सौ बीस शबद ही है। बिश्नोईसमाज के लोग उन्तीस धर्मादेश (नियमों) का पालन करते है समाज के लोगों के अनुसार ये धर्मादेश गुरु जम्भेश्वर ने ही बनाये थे। इन उन्तीस नियमों में से आठ नियम जैविकवैविध्य तथा जानवरों की रक्षा के लिए है, सात धर्मादेश समाज कि रक्षा के लिए है। इनके अलावा दस उपदेश खुद की सलामती और अच्छा स्वास्थ्य के लिए है और बाकी के चार धर्मादेश रोजाना भगवान को याद करना और पूजा-पाठ करने के लिए प्रतिपादित किये गए थे। बिश्नोई समाज के लिए हर साल मुकाम या मुक्तिधाम मुकाम में मेला भरता है जहां हज़ारों की संख्या में बिश्नोई समुदाय के लोग आते हैं। गुरु महाराज ने जिस बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की थी उस 'बिश' का मतलब 20 और 'नोई' का  मतलब 9 होता है, इनको मिलाने पर 29 होते है बिश-नोई+बिश्नोई/29, अर्थात जो व्यक्ति इन 29 नियमों का पालन करेंगे वो बिश्नोई कहलायेंगे। मुख्यतः बिश्नोई संप्रदाय के लोग खेजड़ी को अपनी पवित्र पेड़ मानते हैं।


1. जम्भेश्वर भगवान् का जीवन-दर्शन : 

श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान (जाम्भोजी) का जन्म राजस्थान के नागौर ज़िले के पीपासर गांव में 1451 कृष्ण पक्ष के आठवें दिन एक राजपूत क्षत्रिय परिवार में हुआ था। भगवान कृष्णका भी जन्म उसी तिथि को हुआ था। इनके बूढ़े पिता लोहट जी की 50 वर्षों तक कोई संतान नहीं थीं इस कारण वे दुखी थे। जाम्भोजी ने अपने जन्म के बाद अपनी माँ का दूध भी नहीं पिया था। साथ ही 7 सालों तक कुछ नहीं बोल पाये थे। जाम्भोजी ने अपना पहला शब्द (गुरु चिंहो गुरु चिन्ह पुरोहित) बोला था और अपनी मूकता तोड़ी थी। जम्भ देवसादा जीवन वाले थे लेकिन काफी प्रतिभाशाली थे साथ अकेला रहना पसंद करते थे। इन्हें शादी करना पसंद नहीं था अपितु गायों का चराना अच्छा लगता था। 34 वर्ष की आयु में समराथल धोरा नामक जगह पर उपदेश देने शुरू किये थे। ये समाज कल्याण की हमेशा अच्छी सोच रखते थे तथा हर दुःखी की मदद किया करते थे। मालवा में 1485 में अकाल पड़ने के कारण वहां के लोगों को तथा अपने जानवरों को लेकर जाना पड़ा था , इससे जाम्भोजी बहुत दुःखी हुए। फिर जाम्भोजी ने उन दुःखी किसानों को वहीं पर रुकने को कहा ; और कहा मैं आप कइ सहायता करूँगा। इसी बीच गुरु जम्भदेव ने दैवीय शक्ति से सभी को खाने पीने तथा कृषि करने के यंत्रों की सहायता की। हिन्दू धर्म के अनुसार वो काल निराशाजनक काल कहलाया था। उस वक़्त यहां पर आम जनों को बाहरी आक्रमणकारियों का बहुत डर था साथ ही ये हिन्दू लोग विभिन्न देवी देवताओं की पूजा करते थे। दुःखी लोगों की सहायता हेतु गुरु जम्भेश्वर ने 1485 में बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की।


2. जम्भेश्वर भगवान् की शिक्षा-दर्शन : 

जाम्भोजी ने अपनी शिक्षा में काव्य शब्दवाणी सीखी थीं जिसमें वर्तमान में सिर्फ़ 120 शब्दों का ज्ञान है। शब्दवाणी में सम्पूर्ण बिश्नोई के बारे में ज्ञान है। गुरु जम्भेश्वर ने 29 धर्मोपदेश दिए थे।


3. बिश्नोई समुदाय-दर्शन : 

बिश्नोई धर्म एक व्यवहारिक एवं सादे विचार वाला समुदाय है; इसकी स्थापना गुरु जम्भेश्वर भगवान ने 1485 में की थी। बिश्नोई जो 29 (बिश+नोई) धर्मादेशों पर आधारित है। बिश्नोई समाज के लोग हिरण को अपना सगा संबधी जैसा मानते है तथा उनकी रक्षा करते है रक्षा करते-करते कई शहिद भी हुए है। इनके अलावा प्रकृति प्रेमी भी है।


4. खेजड़ली का बलिदान-दर्शन :

 खेजड़ली एक गांव है जो राजस्थान के जोधपुर ज़िले में स्थित है यह दक्षिण-पूर्व से जोधपुर शहर से 26 किलोमीटर दूर है। खेजड़ली गांव का नाम खेजड़ी पर रखा गया। सन 1730 में इस गांव में खेजड़ीको बचाने के लिए अमृता देवी तथा कुल 363 बिश्नोई लोगों ने बलिदान दिया था। यह चिपको आंदोलन की पहली घटना थीं जिसमें पेड़ों की रक्षा के लिए अपना बलिदान देना पड़ा था जो पर्यावरण संरक्षण के लिए एक मिसाल के रूप में कायम है।


5. गुरु महाराज के नाम पर विश्वविद्यालय-दर्शन :

 वर्ष 1995 में, हरियाणा सरकार ने गुरु महाराज के नाम पर उत्तर भारत के प्रथम तकनीकी विश्वविद्यालय की स्थापना की थी जिसका नाम गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय रखा गया था। यह विश्वविद्यालय गुरु महाराज के मूल्यों व सिद्धान्तों को आगे बढ़ाते हुए निरन्तर तररकी कर रहा है तथा पिछले अठारह वर्षों से "ऐ-ग्रेड" की उपाधि से सुशोभित है व इस वर्ष अपना 25वाँ स्थापना वर्ष यानि रज़त जयन्ती वर्ष भी मना रहा है। अतः गुरु जम्भेश्वर भगवान् की शिक्षाओं पर आधारित ज्ञान का विस्तृत अध्ययन हेतु आप अपनी सुविधानुसार किसी भी समय गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय हिसार में स्तिथ "गुरु जम्भेश्वर धार्मिक शिक्षण संस्थान" (प्रोफ़ेसर किशना राम बिश्नोई से सम्पर्क करके) से नियमानुसार आवश्यक अध्ययन सामग्री पढ़ने के लिये ली जा सकती है क्योंकि यहाँ जम्भेश्वर महाराज से सम्बंधित सभी प्रकार की अध्ययन सामग्री (शैक्षणिक व शोधन सम्बंधित उद्देश्य के लिए) उपलब्ध कराई गई है।


निष्कर्ष : 

समस्त विश्वविद्यालय परिवार, ऐसे महान पर्यावरणविद, समाजसुधारक, दुरदृष्टिवान, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के समर्थक व् बिश्नोई संप्रदाय के निर्माता श्री गुरु जम्भेश्वर महाराज को नमन करने में सदैव गौरव की अनुभूति करता है तथा उनके द्वारा प्रतिपादित आदर्श मूल्यों व सिद्धान्तों को आम जन तक विशेषकर युवापीढ़ी तक पहुँचाने में अत्यंत आत्मिक सन्तुष्टि का अनुभव होता है क्योंकि यही सब मूल्य व सिद्धान्त युवापीढ़ी को एक श्रेष्ठ व्यक्तित्व बनाने में सहायक हैं जो समाज के लिए शिक्षा का सर्वप्रथम उद्देश्य है।

आपका बहुत बहुत धन्यवाद व नमस्कार !!!



- प्रोफ़ेसर कर्मपाल नरवाल

गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार (हरियाणा)

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