बिश्नोई धर्म और पाहल का महत्व
किसी भी प्रकार से धर्म मर्यादा भंग होती हो तो पुन उसे जोडने के लिये पाहल बनाकर ग्रहण करके पुनः जोड़ने का संकल्प लेना चाहिये । जब जब भी धर्म मर्यादा टूटी है। तो उसको प्रहलाद, हरिश्चन्द्र युधिष्ठिर आदि महापुरूषों ने पुनः जोडा है । सभी को जोड़ने के लिये पाहल ही अमृत जल था ।
यह पाहल संत सिद्ध भक्तों हेतु किया जाता रहा है । इसी पाहल के प्रभाव से कई संत सिद्ध इस संसार सागर से पार हो गये । इसी पाहल के प्रभाव से ही शरीरों के पाप झङ जातें हैं, बहुत सा पुण्य होता है।
नियम से ही सम्पूर्ण सृष्टि चलती है । बिना नियम के तो इस संसार के कोई भी जीव जन्तु, तारे, नक्षत्र सूर्य, चन्द्र, वायु जल आदि नहीं जी सकते । यदि ये नियम को तोङदे तो सभी जगह उथल पुथल मच जायेगी । यह पाहल ही नियम में बांधने वाला है क्योंकि इसमें सभी देवतागण विराजमान रहते हैं।
कोई सिद्ध पुरुष या कोई सिद्ध संत यदि इस पाहल को ग्रहण करें तो पाहल ग्रहण करनें वालों की गति हो सकती है उनका उद्धार सम्भव है । अन्यथा तो जल पाहल कर्ता के दर्गणों को भी अपने में समाहित कर लेगा । लाभ की जगह हानि होने की भी संभावना प्रबल हो जायेगी । ऐसे सुपात्र सर्वत्र प्राप्त नहीं होते, प्रत्येक वन में चन्दन नहीं होता प्रत्येक तालाब में कमल का फूल नहीं खिलता ।
आप लोग अपने उद्धार हेतु अडसठ तीर्थों में क्यों भटकते हो । यहाँ घर बैठे ही पाहल आपका उद्धार कर देगा, पाहल की गति तो गंगा के समान पवित्र कर देने वाली है, अन्यत्र भटकने से तो क्या लाभ? घर आयी हुई गंगा को छोड़कर कहाँ कहाँ भटकोगे।
सतगुरु ने कहा है हे सिद्धों । हे पवित्र संत आत्माओं । आप लोग अपने अंदर झांक कर के तो देखो।
तुम क्या हो? तथा अपने को क्या समझ बैठे हो ?” जागो जोवो जोत न खोबो, छल जायसी संसारू
इस प्रकार से भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके तथा कछुवे का रूप धारण करके जो मर्यादा बांधी थी वही मर्यादा इस समय पाहल से बांधी जायेगी भगवान ने वराह नृसिंह , कृष्ण, बुद्ध आदि अवतार धारण करके जो मर्यादा बांधी थी वही मर्यादा सतगुरु जी कहतें हैं कि में बांधने के लिये आया हूँ।
इस प्रकार से कलश की स्थापना करके श्री देवजी ने पाहल बनाकर सभी के हाथ में अमृत जल देकर संकल्प करवाया, उस समय पवित्र परमात्मा की ज्योति जल रही थी, ज्योति स्वरूप भगवान विष्णु वहाँ पर उपस्थित थे ।” यज्ञो वै विष्णु ” स्वयं सतगुरु रूप में स्वयं सिद्धेश्वर जी विराजमान थे समाज के अग्रगण्य पूल्होजी वहाँ पर उपस्थित थे । तथा सभी अपने अपने कुल के शिरोमणी अग्रगण्य जन उपस्थित थे।
जल देवता को हाथ में देकर संकल्प करवाया था उनसे कहा गया कि आज तक जो भी हमने भूल की है अब आगे हम जल देवता, अग्नि देवता सूर्य देवता, वायु देवता, पृथ्वी देवता , तथा समाज के अग्रगण्य जनों के सामने हम सदगुरु देव को वचन देते हैं कि आगे पुनः मानवता के धर्म विश्नोई पन्थ के अनुगामी रहेंगे । हम तो चलेंगे ही तथा हमारे परिवार कुटुम्बियों को भी प्रेरित करेंगे इस प्रकार से संकल्प करके विश्नोई पन्थ प्रारंम्भ हुआ । श्री गुरु जम्भेश्वरजी ने जल हाथ में देकर संकल्प करवाकर के पुनः न्हे उनतीस नियमों कि संहिता बताया।
साभार:- जम्भवाणी
फोटो द्वारा VIP Photography