हरियाणा: “हार और जीत” एक ही सिक्के के दो पहलू है - भव्य, चंद्र मोहन बिश्नोई

 हरियाणा: “हार और जीत” एक ही सिक्के के दो पहलू है - भव्य, चंद्र मोहन बिश्नोई 

हरियाणा: “हार और जीत” एक ही सिक्के के दो पहलू है - भव्य, चंद्र मोहन बिश्नोई



जय खीचड़|

हरियाणा की राजनीति में अपनी धमक रखने वाले ‘बिश्नोई रत्न’ चौधरी भजनलाल परिवार के लिए इस बार चुनाव परिणाम प्रतिकूल और अनुकूल एक साथ रहे। चौधरी भजनलाल बिश्नोई की राजनीतिक सरजमीं आदमपुर से उनका पोता भव्य बिश्नोई चुनाव हार गए तो वहीं पंचकूला से ज्येष्ठ पुत्र चंद्र मोहन विधायक चुने गए। आदमपुर 56 वर्षों से बिश्नोई परिवार को अपना आशीर्वाद देकर जीताता रहा है। चौधरी भजनलाल बिश्नोई की राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी कुलदीप बिश्नोई बने। चन्द्र मोहन को पारिवारिक व राजनैतिक अधिकारों से उस वक्त बेदखल होना पड़ा जब वे ‘डिप्टी-सीएम’ रहते कूटरचित षड्यंत्र का शिकार हो गए। अलग-थलग पड़े चंद्रमोहन ने बरसों समाज और राजनीति से दूर बनवासकाल में प्रायश्चित कर अपनी भूल को मूल से दूर कर चौधरी भजनलाल जी की विरासत, व्यवहार, संपर्क को बनाये रखा। जिसका परिणाम हमारे सामने हैं। 


चौधरी भजनलाल बिश्नोई की राजनीतिक और सामाजिक विरासत को कुलदीप बिश्नोई ने जब थामा तब हरियाणा ने कुलदीप बिश्नोई को सरआंखो पर बिठाया, समाज ने मान-मर्यादा का सिंबल मान हरियाणा से लेकर राजस्थान तक राजनैतिक और सामाजिक तौर पर इनकी जड़ें सिंचने का कार्य किया। कहते हैं न राजसत्ता का सुख भोगने वालों की दूर दृष्टि धीरे-धीरे कम होने लगती है। उन्हें बस अपने इर्द-गिर्द रहने और जी-हजूरी करने वाले लोग ही दिकते हैं। कुलदीप बिश्नोई की जड़ें कमजोर करने वाले यही लोग हैं। लोगों की समस्याओं को अपने तक सीमित रखा और अपने स्वार्थ सिद्धि के अलावा दूर का सबकुछ ओके दिखाया। दुसरी तरफ समाज की मान-मर्यादाओं से अति उत्साहित होकर “धर्म के घंटे” की जगह “हुकुम का घंटा” बजाने लगे। स्वयं को समाज का सर्वेसर्वा मानने और मनवाने लगे। सामाजिक संस्थाओं पर आधिपत्य स्थापित करने के प्रयत्न में जिन लोगों में दशकों तक इस परिवार की जड़ें सींचने का काम किया उन्हें अपने से दूर करते गए। बेटे ने अंतर्जातीय सगपण किया। जिसके चलते इन्हें सामाजिक आक्रोश झेलना पड़ा। हालांकि इंटर-कास्ट रिलेशन कोई आज की बात नहीं है राजा-महाराजाओं के समय से ही होते आए हैं। यहां मामला विपरीत था स्वयं को समाज का संरक्षक मानने वालों से समाज, सामाजिक परिपाटी के विध्वंस की अपेक्षा तो कपितय नहीं करत‌ा। 

“एक ही सिक्के दो पहलू” पहला सबकुछ छीने जाने के बाद भी सामाजिक सरोकारों से दूर चौधरी भजनलाल बिश्नोई के सपनों का संवाहक बनकर संघर्ष की सीढ़ियां चढ़ते गया और आज पुनः जहां से छोड़ा था वहीं पहुंच कर अपनी लोकसेवक के रुप में भागीदारी सुनिश्चित की हैं वहीं दुसरे पहलू की बात करें तो  सबकुछ होने के बाद अपनी हठ-धर्मिता से उसे धीरे-धीरे खोते गए और आज 56 बरस बाद आदमपुर खोकर भी ठोकर लगे तो अच्छा ही है। आज हारे हैं तो कल जीत भी जाएंगे।

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