विश्व गौरेया दिवस : अपने भोजन के साथ नन्हें परिन्दो के भोजन की व्यवस्था भी करें

विश्व गौरेया दिवस : अपने भोजन के साथ नन्हें परिन्दो के भोजन की व्यवस्था भी करें

विश्व गौरेया दिवस : अपने भोजन के साथ नन्हें परिन्दो के भोजन की व्यवस्था भी करें


हमारा समाज सदियों से दरख़्तों के दर्द को अपना दर्द समझते आया है इतना ही नहीं गम वन्य जीवों और पशु-पक्षियों की देखभाल उतनी ही सिद्दत से करते आए हैं। 

मुझे आज भी याद है मेरी दादी हमेशा अपने भोजन (चुरमा) की पहली रोटी में से आधा नन्हे परिंदों को अर्पित करती‌ थी। मैंने अपनी समझ से ही दादी को बिना आंखो के देखा, दरअसल मोतियाबिंद के कारण उनकी आंखों से ज्योति चली गई। उस वक्त तक मोतियाबिंद का इलाज़ सुलभ संभव न था, अजमेर से लेकर खीचन तक ऑपरेशन के लिए गए तबतक देर हो चुकी थी। उन्होंने आंखों से तो पुनः संसार नहीं देखा लेकिन आत्मज्योति के आलोक से जीवन के अंतिम 2 दशक बड़े सिद्दत से‌ जीये।


मुझे उनके जीवन से बहुत सी अच्छाइयों को सहेजने का अवसर मिला लेकिन भोजन के प्रति उनका भाव मुझे हमेशा अच्छा और सच्चा बनने को प्रेरित करता रहेगा। हमेशा भोजन के समय ईश्वर को याद करती और पहला निवाला स्वयं न लेकर नन्हीं चिड़िया (गौरैया) को डालने को कहती थी। उन्हें अपनी भूख मिटाने से ज्यादा दूसरों को खाना खिलाना अच्छा लगता था। नित्यकर्म के पश्चात हवनादि से निवृत्त होकर हमेशा पंछियों को चुग्गा डालना उनकी दैनिक दिनचर्या का हिस्सा था। उसी हिस्से के किस्से को आज मैं आपसे साझा कर रहा हूं क्योंकि आज विश्व गौरेया दिवस है। यह नन्हा जीव चि-चहाहट करता हमारे हृदय को सुकून देता है। लेकिन बदलते परिवेश में मानव के बदलते मन ने इनके अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। दाना पानी तो दूर का विषय है हमने इनके प्राकृतिक आवास ही उजाड़ दिए हैं। पहले जहां ये हमारे घरों के सदस्य हुआ करते थे, कच्चे घरों में इनके घोंसले और उनमें इनके नन्हें नन्हें चुजे इनकी बढ़ती‌ संख्या का परिचायक हुआ करते थे। अब कंक्रीट के बनते महलों में इनकी जगह न रही... रोशनदान में एक-आद भले ताका-झांकी करते दिखे। मार्च का महिना खत्म होने को हैं गर्मी धीरे-धीरे अपना अहसास करवा रही है। दाना-पानी की व्यवस्था कर हमें गौरेया को बचाने की दिशा में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। 

 




  

Hot Widget

VIP PHOTOGRAPHY