Colonel Sajjan Bishnoi :अनुकरणीय व्यक्तित्व एवं कृतित्व के धनी हैं कर्नल सज्जन डेलू
उच्च पद पर रहते हुए छू तक नहीं पाया अहंकार, परिवार के पांच लड़कें हैं ऑफिसर पद पर तैनात
बिश्नोई समाज व्यक्ति विशेष की प्रस्तुति में हम आपको ऐसी शख्सियत से रूबरू करवा रहे हैं जिनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व अनुकरणीय है।
कर्नल सज्जनलाल डेलू का जन्म अबोहर के छोटे से ग्राम खैरपुर के एक साधारण किसान परिवार में चौ. श्री रामनारायण जी डेलू के घर हुआ। इन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने ग्राम की प्राथमिक पाठशाला में ग्रहण की। मौजूदा परिस्थितियां शिक्षा के बिल्कुल अनुकूल नहीं थी। ग्राम में एकमात्र प्राथमिक पाठशाला थी और एक ही शिक्षक नियुक्ति थे। वे भी यदा-कदा ही विद्यालय आते साथ पारिवारिक पृष्ठभूमि खेती-बाड़ी थी। प्रथम कक्षा के पश्चात परिवार खेत में ढ़ाणी में चले जाने से एक वर्ष तक विद्यालय से दूर रहना पड़ा। बचपन से ही मेधावी कर्नल सज्जन प्रथम कक्षा से दसवीं कक्षा तक हमेशा अपने स्कूल में प्रथम रहते थे। गांव में पांचवीं तक ही विद्यालय होने व परिवार में सबसे बड़े होने के नाते माता-पिता पैतृक कार्य में लगाना चाहते थे क्योंकि पंजाब व राजस्थान में जमीन होने के कारण अलग-अलग जगहों पर खेती करना थोड़ा दुरूह था, परन्तु कर्नल सज्जन की पढ़ाई के प्रति प्रबल इच्छा शक्ति को देख उनकी भुआ जी ने परिवार से अनुरोध व आग्रह किया कि हमारे गांव में आठवीं तक विद्यालय है अतः सज्जन को हमारे यहां ले जाना चाहती हूं, वहां विद्यालय में दाखिला दिलवा देंगे। कर्नल सज्जन ननिहाल में बड़े ही प्रेम भाव से रहते हुए और साथ में खेतीबाड़ी में योगदान देते हुए मिडल कक्षा असाधारण परीक्षा परिणाम 69 प्रतिशत से उत्तीर्ण कर नौवीं कक्षा के लिए अबोहर में दाखिला लिया, क्योंकि हाई स्कूल आस-पास नहीं था। सन् 1969 में गांव से 13-14 किमी दूर दुतारांवाली में हाई स्कूल खुला तो शहर छोड़ वहां प्रवेश लिया क्योंकि परिवार में बड़ा होने के नाते पैतृक खेती के कार्य में भी हाथ बंटाना अत्यावश्यक था। हाई स्कूल तक कच्चे रास्ते पर साइकिल से जीवन की राह के आधार बुनते चले। कच्चे रास्तों के कारण स्कूल जाते समय कभी वे साइकिल पर तो कभी साइकिल उन पर रहती थी। धीरे- धीरे सफलता के शिखर की ओर अग्रसर कर्नल सज्जन विद्यालय से आकर खेतीबाड़ी के कार्य में हाथ बंटाते फिर लाइट ना होने के कारण रात में लालटेन के सहारे अपनी पढ़ाई करते।
तत्कालीन परिस्थितियां और सामाजिक कुरीतियों की बेड़ियों से बच पाना उनके लिए भी ना मुमकिन था। तीसरी कक्षा में आते ही सगाई और नौवीं में विवाह की शहनाई गूंज गई। शादी के साथ ही पारिवारिक जिम्मेदारी का निर्वहन और पढ़ाई एक साथ संभव नहीं थी, परंतु पढ़ाई के प्रति समर्पण को देखते हुए शिक्षकों, परिवार और धर्मपत्नी के सहयोग से पढ़ाई जारी रखी और दसवीं कक्षा सन् 1971 में प्रथम श्रेणी से पास की उस समय ग्रामीण परिवेश में शिक्षा का स्तर इतना नोचा था कि सज्जन अपने गांव का पहला छात्र था जिसने पहली दफा कॉलेज से बीएससी करने का गौरव हासिल किया। उस समय बुनियादी सुविधाओं के अभाव के अलावा शिक्षा के प्रति उदासीन माहौल में उचित मार्गदर्शन की कमी के चलते एक किसान के बेटे के लिए यह सब आसान नहीं था, मगर सज्जन की सज्जनता व दृढ़ इच्छाशशिक्त तथा जीवन मे अच्छा इन्सान बनने के जनून ने कमजोरियों को अपनी ऊर्जा बनाते हुए विपरीत परिस्थितियों को भी अपना गुलाम बना लिया। उनके संघर्ष को देख सफलता भी नतमस्तक होने लगी, आखिरकार वो घड़ी भी आई जिसका उन्हें वर्षों से इंतजार था। सन् 1975 में बीएससी उत्तीर्णं करते ही प्रथम प्रयास में 1976 में UPSC के माध्यम से सीधे ही अफसर पद के लिए चयन हुआ और ओटीएस चैन्नई से 1977 में सैकिंड लेफ्टीनेंट के पद पर तैनात हुए तथा उनकी नियुक्ति ‘जाट रेजिमेन्ट की तृतीय बटालियन’ में हुई। कर्नल सज्जन दिमाग के अलावा शारीरिक रूप से भी चुस्त थे तथा 1974 में कॉलेज के बेस्ट ऐथलिट बने और प्रशिक्षण काल में दस किलोमीटर बीपीईटी के कोर्स में प्रथम रहे। हमेशा उत्कृष्ट प्रशिक्षण कौशल के दम पर अव्वल केडिटों में रहे, इसी खूबी के सहारे उन्होंने जहां भी पोस्टिंग हुई वहां अपनी अमिट छाप छोड़ी। भारतीय सेना का असली गौरव पैदल सेना (इनफेंट्री) में होने के कारण सेवा के दौरान उन्होंने भिन्न-भिन्न दुर्गम स्थानों पर सेवा दी, मगर इस जाबांज फौजी अफसर ने हमेशा विपरीत परिस्थितियों का डट कर मुकाबला किया।
अनुशासन व पारिवारिक खानदान से मिले, संस्कारों का पड़ा गहरा प्रभाव
कर्नल सज्जन के जीवन में अनुशासन के अलावा पारिवारिक खानदान से मिले संस्कारों की सीख का बहुत गहरा असर पड़ा। आमतौर पर सेना में अंग्रेजी हुकुमत से ही पश्चिमी संस्कृति का बोलबाला रहा है व आजादी के बावजूद भी उसी परिपाटी का परिचलन प्रचुर है, इसी के चलते फौजी अफसर से शादी के लिए लड़की का ना केवल शिक्षित होना ही जरुरी है, बल्कि अंग्रेजी भाषा का ज्ञान भी आवश्यक माना जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों के रहने वाले फौजी जब सरकारी आवास में परिवार समेत रहते हैं तो अलग-अलग भाषा, रीति-रिवाज व परिधानों की विभिन्नताओं के बावजूद एक संस्था में समान्तर जीवन यापन करना पड़ता है। ऐसे में ग्रामीण परिवेश की अशिक्षीत महिलाओं को बहुत सी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है और जब ऐसी समस्या किसी बड़े ओहदे के अधिकारी के समक्ष हो तो वो आमतौर पर अपनी पत्नी के प्रति उपेक्षित नजरिया अपनाते हुए या तो तलाक लेकर दूसरी शादी कर लेता है या शर्मिंदगी के कारण अपनी कमजोरी समझकर गांव में ही रखना उचित समझता है। मगर कर्नल सज्जन ने बालविवाह के अभिशाप को अभिशाप ना समझकर अपनी पारिवारिक व वैवाहिक जिम्मेवारी को बखूबी समझते हुए अपनी धर्मपत्नी का सम्मान व इज्जत करते हुए जहां भी पोस्टिंग रही वहां भी साथ रखा व सुखद वैवाहिक जीवन में सदा खुश रहे तथा लगभग पैतीस वर्षों तक अलग-अलग पदों पर उत्कृष्ट सेवा देते हुए देश सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहे। आखिर अपनी गौरवमयी व बेदाग सेवा से 2008 में कर्नल के पद से सेवानिवृत हुए। सेवानिवृति के पश्चात भी वतन की सेवा को हो महत्ता देते हुए एक बार पुनः सेना में सेवा देने लगे और चार वर्ष पश्चात 2012 में सेना की वर्दी छोड़कर बीकानेर में रहने लगे परन्तु कर्मशील व्यक्तित्व के धनी कर्नल सज्जन ने घर बैठने की बजाए 2014 में सेवानिवृत सैनिकों के लिए चिकित्सालय हनुमानगढ़ में ओआईसी के पद पर पुनः सेवा देने लगे व इसी वर्ष ही वहां से सेवानिर्वत हुए हैं।
गांव की मिट्टी की सौंधी महक को नहीं भूला पाए
सज्जन कर्नल सज्जन सर्विस के दौरान देश के विभिन्न शहरों में रहे मगर आधुनिकता की चकाचौंध व शहरी आकर्षण में भी अपने गांव की मिट्टी की सौंधी खुशबु को नहीं भूल पाए। इस बारे में चर्चा करते हुए कर्नल सज्जन कहते हैं कि गांव में जहां ना केवल बचपन की अमिट यादें बिखरी हुई है बल्कि जिन्दगी की असली रंगत पसरी है। गांव की बहुमूल्य संस्कृक्ति की रौनक रुह को अजीब सुकून का अहसास कराती है कोई भला कैसे भूल जाए उस पावन पवित्र धरा को जिसमे पुरखों की सांसे गड़ी है। अपनी जन्मभूमी को ही कर्मभूमी मानकर कर्नल सज्जन ने गांव के अलावा पास के शहर में ही बसना उचित समझा। यही नहीं वे हमेशा अपने गांव में बुजुर्गों व बच्चों से हमेशा मिलने की कोशिश करते हैं ताकि बुजुर्गों से कुछ सीखते रहे व बच्चों को जीवन में अच्छा करने के लिये प्रोत्साहित करते रहे। वह अकसर स्कूल व कॉलेज में बच्चों को पढ़ने व प्रतियोगी परीक्षा के लिए मार्गदर्शन करते रहते हैं। सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धांत का अनुसरण करते रहे हैं। यही कारण है कि उच्च ओहदा प्राप्त करने के बावजूद भी अहंकार उन्हें आजतक छु तक नहीं पाया।
पारिवारिक परिचय
प्राथमिक पाठशाला परिवार से दादा चौ. श्री मलूराम जी डेलू जो बहुत ही मेहनती इन्सान थे उनसे कर्नल सज्जन ने सादगी और मेहनत के संस्कार और माता श्रीमती तुलसी से परोपकारी और मीठी भाषा व पिता रामनारायण जी डेलू से दूरदृष्टि व आगे बढ़ने की ललक का अपने जीवन में समावेश करने की कौशिश की और अदम्य जीवनशैली, मिलनसार, दूसरों की मदद की लालसा के धनी कर्नल सज्जन के व्यक्तित्व को दूसरों से अलग व विशेष बनाता है। उन्होंने खेती-बाड़ी से जुड़े पैतृक कार्य व परिवार में बड़े होने की जिम्मेदारी भी बखुवी निभाई। संयुक्त परिवार में आज भी कर्नल सज्जन के सिवाय सभी भाई पैतृक कार्य से जुड़े हैं और आजकल बीकानेर कोलायत के पास गड़ियाला गांव में भी अपनी जमीन पर खेतीबाड़ी का कार्य कर रहे हैं।
परिवार के पांच लड़के ऑफिसर पद पर है तैनात
आधुनिक युग में शिक्षा के महत्व को समझते हुए कर्नल सज्जन डेलू ने सभी बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। हम सब के लिए यह गर्व का विषय है कि छह भाइयों के परिवार में छह लड़के और पांच लड़कियां है। इनमें एक लड़के को छोड़ सभी लड़के और लड़कियां उच्च शिक्षित ही नहीं बल्कि पांच लड़के ऑफिसर पद पर तैनात है। मुकेश आप की ही रेजीमैन्ट में मेजर, राकेश व रविराज देश की विशिष्ट सेना एनएसजी में सेवा दे रहे हैं व जयपाल बीएसएफ में अफसर और पांचवा व सबसे छोटा अरविन्द केनरा बैंक में ब्रांच मैनेजर पद पर सेवारत है। लड़कियां भी सभी बीए, बीएससी इत्यादि व कुछ अध्यापिका के रूप में देश सेवा में लगी है। एक लड़की फिलहाल आईएएस की तैयारी कर रही है, वहीं परिवार की बहुएं भी उच्च शिक्षीत है और टीचिंग नौकरी में व्यस्त है। कर्नल सज्जन की पुत्री अंजू बिश्नोई आर्मी स्कूल में अध्यापिका है और दामाद राजकुमार गोदारा सेना में लेफ्टीनेंट कर्नल के पद पर तैनात है। वे सेना में हेलीकाप्टर पायलट भी रह चुके हैं व अब विदेश में यूएन फोर्स में सेवा देकर इसी महीने वापिस लौटे हैं।
परिवार नियोजन पर दिया विशेष ध्यान
डेलू परिवार ने परिवार नियोजन पर विशेष ध्यान दिया तथा परिवार में दो बच्चों से अधिक नहीं की नीति अपनाई। खानदान में किसी भी बच्चे का बाल विवाह नहीं होने दिया यह आपकी दुरदृष्टि व मार्गदर्शन का ही परिणाम है कि इतना बड़ा परिवार आज भी हंसी खुशी संयुक्त रूप से एक ही छत के नीचे निवास कर रहा है। ऐसे परिवारों में खुशियों की कोई कमी नहीं रहती जहां हर दिन होली तो रात दिवाली सी रहती है।
शहीद सैनिकों व उनके परिजनों के प्रति दिल में रखते हैं विशेष स्थान
एक सैनिक अफसर होने के नाते कर्नल सज्जन बिश्नोई के दिल में शहीद सैनिकों, उनके परिवार व बच्चों के लिए दिल में विशेष स्थान है। इसी के मद्देनजर उन्होंने बिश्नोई और बिश्नोईज्म ग्रुप के सभी सदस्यों के बहुमूल्य सहयोग से जिस के आप कॉ एडमिन भी है, हमारे समाज के शहीद सिपाही जगदीश गोदारा गांव पांचलासिद्धा व शहीद सिपाही जगदीश जेगला के परिवार के लिए क्रमशः 3.67 लाख व 2.50 लाख रुपए की मदद पहुंचाई व दोनों के गांव अपने ग्रुप के साथियों के साथ जाकर परिवार को सांत्वना दी व उनके परिवार की देश के लिए दी शहादत की भूरी भूरी प्रशंसा की व हर जगह मदद की पेशकश की।