जाम्भोलाव धाम: गुरु श्री जम्भेश्वर भगवान मंदिर एवं जम्भ सरोवर तालाब
जाम्भोलाव को जम्भसरोवर, विसन तीरथ, कलियुग का तीरथ, विसन तालाब, कपिल सरोवर एवं यति तीर्थ शिरोमणी जाम्भोलाव धाम भी कहा जाता है पर इसका लोक प्रचलित नाम जाम्भोलाव ही है। जाम्भोलाव धाम यह बिश्नोई समाज के प्रमुख तीर्थस्थलों अर्थात अष्ट धामों में से एक हैं।
गुरु श्री जम्भेश्वर भगवान मंदिर एवं जम्भ सरोवर तालाब
फलौदी से लगभग 20 कि.मी. पूर्वोत्तर में स्थित है। यहाँ एक बड़ा तालाब है, जिसे गुरु जाम्भोजी ने खुदवाया था जाम्भोळाव पर बने मन्दिर में सफेद मकराने के पत्थर का एक पूर्वाभिमुख सिंहासन है। कहते हैं कि इसी पर बैठकर गुरु जाम्भोजी तालाब की खुदाई का काम देखते थे। यहां से थोड़ी दूरी पर जाम्भा नामक गांव है। यहां साधुओं की दो परम्पराएं हैं- एक आगूणी जागां और दूसरी आयूणी जागां तालाब के पास पशुओं की कर माफी का एक शिलालेख लगा हुआ है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर पूर्व में कपिल मुनि ने तपस्या की थी और पाण्डवों ने भी यज्ञ किया था। कलियुग में इसे गुरु जाम्भोजी ने प्रकट किया था।
जाम्भोलाव मेला
यहाँ वर्ष में दो मेले लगते हैं एक चैत्र की अमावस्या को और दूसरा भाद्रपद की पूर्णिमा को दोनों मेले संत वील्होजी ने प्रारम्भ करवाये थे। पहला मेला सम्वत् 1648 में प्रारम्भ किया गया था और दूसरे मेले के लिये वील्होजी ने पली गांव के माधो जी गोदारा का सहयोग लिया था। इसी कारण इसे माधा मेला भी कहते हैं। जांभाणी संतों ने इसका महत्त्व अड़सठ तीथों से भी अधिक माना है। यहां पर आने वाले जातरी तालाब में स्नान करते हैं, मिट्टी निकालते है। . साधुओं को भोजन कराते हैं और सूत फिराते हैं। अनेक श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति के लिये तालाब से मिट्टी निकालने की जात बोलते हैं। समाज में यहां के किये गये फैसले को अन्तिम माना जाता रहा है। मन्दिर व तालाब की व्यवस्था आधे वर्ष आथूणी जागा और आधे वर्ष अगुणी जागा के सन्त करते हैं।
निर्माणाधीन है भव्य मंदिर
जांबा गांव में जंभसरोवर के पास जिस स्थान पर जांभोजी ने बैठकर तालाब की खुदाई का कार्य प्रारंभ करवाया था, कालांतर में उसी स्थान के अति निकट संतों ने मंदिर का निर्माण प्रारंभ करवाया। इस समय सरोवर के पास श्री जांभोलाव धाम बिश्नोई सभा श्री जांबा द्वारा भगवान जांभोजी के भव्य मंदिर का निर्माण करवाया जा रहा है। मंदिर का कार्य निर्माणाधीन है।
दो आश्रम है विद्यमान
जांबा में संतों के दो आश्रम बने हुए है, जिसमें एक श्री जगद्गुरु संताश्रम है जिसके संचालक महंत भगवानदास है तथा दूसरा श्री जंभेश्वराचार्य वील्होजी गद्दी जांबा है, जिसके संचालक महंत प्रेमदास हैं।
जंभसरोवर का उल्लेख मिलता है महाभारत काल में
बाप (जोधपुर) उपखण्ड मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। जांबा स्थित तालाब जंभसरोवर नाम से विख्यात है। इस सरोवर की खुदाई भगवान जांभोजी ने खुद करवाई थी।
जानकारी के अनुसार पाण्डव वनवास काल में काम्यक वन एवं द्वैतवन में रहा करते थे। उन्होंने भी लोमश एवं धौम्य आदि ऋषियों से तीथों के बारे में पूछा तो ऋषियों ने इसी अज्ञात सरोवर का बखान पाण्डवों के समक्ष किया। इसके बाद पाण्डव इस अज्ञात सरोवर जांभोलाव धाम आए तथा यहां पर 18 माह तक यज्ञ अनुष्ठान आदि कार्य किए। इसी दौरान समराथल धोरे पर विराजमान भगवान जांभोजी से वहां पर उपस्थित भक्तों व जनसमुदाय ने शंका करते हुए कहा कि देव तीथों में महानतम तीर्थ स्थान कौनसा है तथा उस तीर्थ का हमें दर्शन लाभ दिलाओ।इस पर गुरु जंभेश्वर ने समराथल धोरे की पश्चिम दिशा की ओर इशारा करते हुए संकेत दिया कि फलोदी कोट के पूर्वोत्तर की तरफ अति निकट ही एक अज्ञात सरोवर है, जिसके बारे में विस्तार से बताऊंगा। यही स्थान पवित्र तीर्थ है। हम सब वहां चलकर उस अज्ञात स्थान की खुदवाई करवाकर उसे पुनः प्रगट करेंगे। इसके बाद भगवान जांभोजी जांबा आए तथा शुभ घड़ी विक्रम सं. 1566 मिगसर कृष्ण पक्ष पुष्य नक्षत्र पंचमी वृहस्पतिवार के दिन तालाब खुदवाई का कार्य प्रारंभ करवाया।
जांबा में कई लोग जांभोजी के पास अपने दुःख मिटाने व ज्ञान बढ़ाने के लिए आते थे तो जांभोजी उनसे कहते कि पहले तालाब से मिट्टी निकालो तथा उसके बाद ज्ञान की बातें होगी तथा आपके कष्टों का निवारण होगा। तालाब खुदाई के दौरान मथुरा नगर की रानी, अली ब्राह्मण की उमंग, ग्वाले की आत्म ग्लानि, अल्लुजी के रोग की निवृति, कवि तेजोजी के कुष्ठ रोग की निवृत्ति, कोल्ह जी के मस्तिष्क रोग की निवृति, कवि कानजी को पुत्र की प्राप्ति, जैसलमेर के राजा जेतसिंह की भौतिक व्याधि से निवृति हुई। तालाब खुदाई का कार्य करीब तीन वर्ष तक चलने के बाद पूर्ण हुआ। मेले में आने वाले श्रद्धालु तालाब से मिट्टी निकालकर पास बने ऊंचे टीले पर डालकर अपने को धन्य महसूस करते हैं। इस सरोवर के जल को गंगाजल के समान पवित्र माना गया है।
जम्भ सरोवर धाम की साखी
कपिल सरोवर नाम, कलियुग तीर्थ थापियो ।
देष फलोदी मांय, भाग परापति पावियो ।
भाग परापति पावियो नै, कृपा करी जगदीष।
आदू तीर्थ प्रगट कियो, सही ज बिसवा बीस।
कपिल मुनि तपै यहां नै, तपै ऋषेष्वर जोग ।
जम्भ सरोवर नाम अब, परगट कहत सब लोग।
कलियुग तीर्थ थापियो ।।1।।
दवापर जुग के मांय, बहु जिग कर हरि पूजियो ।
पांडू परमार्थ रूप, वेद व्यासजी नै पूछियो ।
वेद व्यासजी नै पूछियो नै, थे कृपा करो भगवान।
दिव्य दृष्टि है आपकी, म्हां सूं कहो बखाण।
ऐसो तीर्थ जगत में, जहां अनन्त गुणों फल होय।
जिहिं तीर्थ म्हें जिग करां, म्हारी मनसा पूर्ण होय।
वेद व्यास जी नै पूछियो ।।2।।
कलियुग मंझ के मांय, पाप पूरे जग छावसी ।
तीर्थ रो घटै प्रभाव, दसो दिस दोष दरसावसी ।
दसो दिस दोष दरसावसी नै, धरम हीण संसार ।
श्रुति पुराण भागवत को, माने नहीं लिंगार।
धर्म अंग राजवै पूछे श्रुति विचार ।
गोप तीर्थ प्रगट करे, महिमा बधै अपार ।
घर घर मंगल छावसी ||3||
कपिल सरोवर नाम, कृत जुग में कह भाखियो ।
तीर्थ अधिक अनूप, वेद व्यासजी ने यूं, आखियो ।
वेद व्यासजी नै यूं आखियो नै, पांडू चला परदेष ।
यज्ञ करण रे कारणे, आया बागड़ देष ।
विविध भान्ति सूं यज्ञ कियो, उत्तम तीर्थ जाण।
हेत कर हरि पूजियो, पांडू परम सुजाण ।
जम्भेश्वर यूं आखियो |॥4॥
तीर्थ जाम्भोलाव, हेत कर जहां जाविये।
हरष करे कर कोड, जाणे रे गंगा न्हाविये।
जाण गंगा नहाण कीजै, माटी सूं चित लाया।
निसार माटी करो पूजा, निंवत साथ जिमाय ।
विष्णु मन्दिर होम कीजै, परि मा कर प्रीत।
साखी हरजस शब्द गावै, कर कर उत्सव रीत।
श्री जम्भेश्वर गुण गाविये ||5||
तीर्थ बड़ो तालाब जहां, जाय सूत फिराविये ।
भाव भगति मन सार, सहस गुणों फल पाविये।
सहस गुणों फल पाविये नै, जो सेवै मन काम।
सायुज्य मुक्ति मिले, पावै मन विश्राम ।
अड़सठ तीर्थ उपरां, श्री जम्भ सरोवर घाम।
श्री जम्भेष्वर जी की कृपा से, वरणत गोबिन्द राम । जहां जाय सूत फिराविये ॥6॥