ग्रीन एनर्जी के नाम पर चल रही वृक्षों की कटाई निकट भविष्य में तीव्र मरुस्थलीकरण का कारण बनेंगी
जय खीचड़ |
मरुस्थलीय वनों यथा खेजड़ी, केर-कुमठीया, जाल आदि का थार के मरुस्थल के स्थायित्व और मरुस्थलीकरण रोकथाम में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वर्तमान में छत्तरगढ़ क्षेत्र गांवों और पश्चिमी राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट पर कार्य जोरों शोरों से चल रहा है। माना गया है कि मरुस्थल की यह धरती सौर ऊर्जा के उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त है। सरकार ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में इन प्रोजेक्ट्स के माध्यम से विशेष कर रही है जिसका लाभ हमें निकट भविष्य में मिलेगा। परन्तु सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट्स के नाम पर यहां के मानव जीवन सहायक पेड़-पौधों की कटाई कि जा रही है। हजारों वृक्षों को काट कर मुर्दों की भांति जमींदोज किया जा रहा है। हजारों बिघा जमीन पेड़ विहिन कि जा रही है तो कहीं जलाई जा रही है। असंख्य वन्यजीव-पंछियों के आसियाने इन पेड़ों के साथ नष्ट हो रहे हैं। प्राकृतिक जल स्रोतों को तबाह किया जा रहा है। इसके परिणाम भयावक होंगे, निकट भविष्य में अतितीव्र मरुस्थलीकरण देखने को मिलेगा और इसकी जद में राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के साथ कई राज्य आएंगे। इन वृक्षों की कटाई के बिना भी सौर ऊर्जा उत्पादित की जा सकती है बशर्तें सरकार और कम्पनियों की इच्छा शक्ति हो।
इस मुद्दे में मैं आपका ध्यान राजस्थान के उत्तर-पश्चिम (मरुस्थल) भाग में रहने वाले विशेष पर्यावरणीय हितेषी संप्रदाय (विश्नोई) की और दिलाना चाहुंगा। भौगोलिक विषमताओं का चरम 'भारतीय थार' में वृक्ष व वन्य जीव जन्तुओं के संपोषण से युक्त विचारधारा का उदय मध्य सदी में महान पर्यावरणविद् संत श्री जाम्भोजी के परम संदेशों के द्वारा हुआ। जाम्भोजी ने पर्यावरणीय संदेश को अपने अनुयायियों के जीवन स्तर से जोड़ा ताकि पर्यावरण रक्षण व पोषण मनुष्य की मनोवृत्ति से जुड़ जाए। हुआ भी यही वृक्षों को बचाने में अपनी जान देने से भी नहीं हिचकिचाने वाले लोगों ने अपने श्रद्धेय गुरु जाम्भोजी के संदेश प्राकृतिक संपदा की रक्षा का जिम्मा अपने सर उठाया और इस मरुधरा को हरा-भरा करने व मरुस्थलीकरण रोकथाम में अपनी महत्ती भूमिका निभाई है। आज बिश्नोई समाज के लोग चरम विकास की अंधी बयार के विरुद्ध आन खड़े हुए हैं। क्योंकि यह उनकी जीवन पद्धति के विरुद्ध है। ग्रीन एनर्जी के नाम पर चल रही वृक्षों की कटाई निकट भविष्य में फिर से भीषण गर्मी, अकाल और तीव्र मरुस्थलीकरण का कारण बनेंगी।
सदियों की तपस्या के पश्चात यह क्षेत्र हरियल दरख़्तों की छांव में पल्लवित-पुष्पित हुआ है। अब इसी छांव से गांव विहीन होते जा रहे हैं। यूं ग्रीन एनर्जी के नाम पर मरुस्थलीय भूमि को वनस्पति रहित बनाकर मरुस्थलीय बायोडायवर्सिटी को उजाड़ने के साथ ही साथ भविष्य में यहां के वाशिंदों के पलायन की कहानी लिखी जा रही है। विकास की अंधी बयार में उजड़ते भविष्य को बचाने हेतु यहां के रहवासियों को आगे आना होगा। कटते दरख़्तों, मरते जीव-जिनावरों और जाती हुई जमी को बचाना होगा। क्योंकि सरकारें सिर्फ सिद्धांत/नियम बना सकती है परन्तु समाज सिद्धांत/नियम को लागू कर पर्यावरणीय विकास में भागीदारी सुनिश्चित कर अपना भविष्य सुरक्षित कर सकता है।