राजनीतिक विचारधारा के भैंट चढ़ती अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा
अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा का गठन समाज की राजनेतिक सत्ता धारियों का वर्चस्व बढ़ाने के उद्देश्य से नहीं किया गया वरन महासभा का गठन समाज के वर्चस्व क्षेत्र बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया। महासभा अपनी स्थापना से कुछ समय के लिए राजनीतिक दलबंदी से तो दूर रही किन्तु वर्तमान परिस्थित में ऐसा प्रतीत हो रहा समाज की सामाजिक शीर्षथ की यह संस्था राजनैतिक महत्वकांक्षा का एक जरिया बनकर रह गयी है जो बिश्नोई समाज के अखंड एकता, सामाजिक, राजनैतिक और नैतिक पतन का निमित्त कारण स्वरूप दिखलाई पड़ रही है जबकि इसके उद्देश्य ठीक विपरीत है। अगर समय रहते महासभा अपने उद्देश्य को ध्यान में रखकर अपनी कार्यप्रणाली में परिवर्तन नहीं करेगी तो समाज को इसके दुर्गामी पतन के परिणाम भुगतने होंगे। महासभा के द्वार सभी बिश्नोईयों के लिए खुले हो, वे चाहे किसी भी राजनैतिक विचारधारा के हो। महासभा को बिश्नोई निवासित प्रत्येक जगह पर स्वयं सेवकों को जोड़ना चाहिए। स्वयंसेवकों से केवल यह अपेक्षित अपेक्षा हो की वे बिश्नोईयों की एकता तथा संस्कृति में विश्वास रखें और उसके लिए कार्य करें तथा अपनी सांस्कृतिक परंपरा की सुदृढ़ भीत्ति पर सभी व्यक्तियों के संबंध में अपने अंदर चिरबंधुत्व का भाव निर्मित करें। राजनैतिक अभिलाषा महासभा के कार्यकारी नहीं पालें। महासभा को राजनैतिक अखाड़े से दूर रखें व जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु महासभा का गठन हुआ उसे सर्वदा ध्यान में रखते हुए समाज में कार्यशील रहें। चूँकि महासभा के सदस्य अनेक क्षेत्र में है, राजनीतिक क्षेत्र में भी है वह अच्छा करें उसका फल अच्छा मिलेगा, गलत करेंगे तो उसके दुर्गामी परिणाम संपूर्ण समाज को भुगतने होंगे। महासभा संपूर्ण बिश्नोई समाज का संगठन है न की किसी एक पार्टी विशेष वाला संगठन, क्योंकि महासभा सामाजिक संगठन है न कि राजनेतिक महत्वकांक्षी संगठन! अगर महासभा भी राजनीति का एक हिस्सा बनकर रह गया तो महासभा समाज को जोड़ने का काम नहीं कर पाएगा, क्योंकि राजनीति जोड़ने से ज्यादा समाज तोड़ने का कार्य करेगी। राष्ट्रीय स्तर से लेकर जमीनी धरातल पर अगर राजनीतिज्ञों की समान समझ व सोच व्याप्त होगी तो ही राजनीति जोड़ने का कार्य करेगी। नेता, नीतियां, शासक बिश्नोईज्म के भविष्य नहीं गढ़ सकते। इसलिए महासभा को लोगों को परंपराओं और सांस्कृतिक मूल्यों में पूरी निष्ठा रखते हुए जागृत करना और उनमें धर्म के लिए निस्वार्थ समर्पण की भावना जागृति ही बिश्नोईज्म को आगे बढ़ाएगी। सभी मूल समस्याओं का एकमात्र उपाय है समाज को आगे बढ़ाने हेतु सभी को आपसी द्वेष, राजनेतिक महत्वकांक्षा को भूल व दलबंदी से ऊपर उठकर अपने सभी गुणों/अवगुणों को भगवान श्री के श्रीचरणों में अर्पित कर समाज में सामाजिक, नैतिक, राजनेतिक प्रगति की आशा से निष्ठापूर्वक स्वयं सतत कार्यशील होवें॥
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