संतों ने कलश व समाज को शिखर पर बिठाया, कुलदीप बिश्नोई राजनीति के बाद समाज में गिरती साख बचाते दिखे
दशकों के जीर्णोद्धार कार्य के पश्चात आखिरकार आज बिश्नोई समाज के पवित्रतम तीर्थ स्थल जाम्भोळाव धाम के शीर्ष पर कळश स्थापित कर दिया गया। अपने नए व भव्य स्वरूप के साथ शीर्ष पर मुकुट धारित होते ही मंदिर की शोभा बढ़ गई। कलश स्थापना समाज के संत जनों द्वारा किया गया और समाज के हजारों की तादाद में मौजूद लोग इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने।
कलश स्थापना को लेकर पहले समाज में उठापटक का दौर चल रहा था। 'आखिर किसके करकमलों से कलश स्थापित हो' इस बात को लेकर जाम्भोळाव धाम कमेटी व समाज की अगुवा संस्था महासभा के मध्य सामंजस्य स्थापित नही हो पाया जिसके चलते आखातीज को निर्धारित कार्यक्रम को स्थगन करना पड़ा। समाज में कलश स्थापना में भागीदारी को लेकर कुछ लोग सांस्कृतिक रीति-रिवाजों व धार्मिक मान्यताओं पर होते प्रहारों से समाज के शीर्ष नेतृत्व से नाखुश दिखे। शोशल मीडिया आरोप-प्रत्यारोप व ऑडियो बम धमाकों से दहलता दिखा जिसका एक नजारा हमें विगत जाम्भोलाव मेले में देखने को मिला। इन सब के मध्य जाम्भोळाव धाम कमेटी ने अपनी सुझबूझ से कलश स्थापना संतों द्वारा किया जाना तय किया ताकि सामाजिक बिखराव को रोका जा सके। और हुआ भी वही सामाजिक एकता व सांस्कृतिक संप्रभुता को कायम रखते हुए संतो ने कलश को शिखर पर स्थापित किया। कलश स्थापना के पश्चात महाप्रसादी का आयोजन किया गया।
कलश स्थापना की पूर्व संध्या गुरु जम्भेश्वर भगवान के भव्य जागरण, सुबह हवनादि प्रक्रिया के पश्चात कलश स्थापना और महाप्रसादी से इत्र समाज के कुछ नामधारी अगुवा लोग महासभा संरक्षक को समाज में अपने जरिए स्थापित करते दिखे जैसे कुलदीप बिश्नोई समाज के लिए नए हों।
हरियाणा कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष चयन प्रक्रिया के पश्चात कुलदीप बिश्नोई का यह पहला राजस्थान दौरा था। सामाजिक रुप से भी कुलदीप बिश्नोई पारिवारिक अंतर्जातीय संबंध और महासभा में चुनाव न करवाने व अधिनस्थ संस्थाओं में चुने गए सदस्यों को मनमर्जी से बेदखल करने के चलते अपना वर्चस्व खोते दिख रहे हैं। इसी उलझन से बाहर निकलने का यह प्रयत्न था लेकिन विफल रहे। कलश स्थापना संतों द्वारा कर दी गई, माहौल की गर्मा-गर्मी में जाम्भोळाव के आसपास मौजूद होते हुए भी इस ऐतिहासिक पल के साक्षी न बन पाए। हालांकि इसकी प्रतिपूर्ति के भरसक प्रयास किए गए.... संतों के चले जाने के पश्चात अचानक से अपने चहेतों के साथ आए मंदिर परिसर में अपने द्वारा साथ लाए पट्टिकाओं (कर-कमलों द्वारा....) को फ्रेम में लगाया और फोटोज खिंचवाएंगे व धर्मसभा.... नहीं-नहीं राजनैतिक सभा में पतंग उड़ाते दिखे। पतंगबाजी के इस दौर को राजनैतिक सभा ही कहना ठीक होगा न धर्म सभा! क्योंकि समाज के संतों ने मंच साझा करना मुनासिब नहीं समझा।
सामने उपस्थित सैंकड़ों लोगों को संबोधित करते हुए समाज के राजनैतिक लोगों ने जाम्भोळाव के भव्य स्वरूप को सराहा और इसके भागीदार कार्यकर्ताओं व भामाशाहों और समाज के लोगों का धन्यवाद ज्ञापित किया। इस दौरान सभी एक-दूसरे का मंच से मान-सम्मान करते दिखे साथ ही साथ चौधरी भजनलाल जी के योगदान की आड़ में कुलदीप बिश्नोई को ग्वाड़ में बिठाते दिखे। समाज में बिश्नोई रत्न चौधरी भजनलाल जी के कार्यों को नहीं भुलना संभव नहीं है लेकिन उनके इस अहसान के बदले स्वयं घोषित संरक्षक व महारत्न को समाज कब तक ढोता रहेगा।
कलश थरपणा संतों द्वारा कि गई, साथ लाए अनावरण पट्टिका से हक जताते कुलदीप बिश्नोई दिखे। संतों ने शीर्ष पर मुकुट स्थापित कर समाज को गौरवान्वित किया वहीं कुलदीप बिश्नोई नाम वाली पट्टिका वापस उतारते दिखे। फोटोज कल खबरों में सामाजिक नेतृत्व करते दिखेंगे।
संतों ने कलश व समाज को शिखर पर बिठाया, कुलदीप बिश्नोई राजनीति के बाद समाज में गिरती साख बचाते दिखे।