आजादी के परवाने मेवाड़ी विश्नोई दंपती प्यारचंद और भगवती विश्नोई
प्यारचंद विश्नोई राजस्थान के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने नमक सत्याग्रह, बिजौलिया के किसान आंदोलन, मेवाड़ में प्रजामंडल के उत्तरदायी शासन सत्याग्रह व अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। इस कारण उन्हें करीब 5 साल जेलों में बिताने पड़े। अंग्रेजों से लोहा लेने वे एक बार महीनों तक ग्वाले के वेश में आजादी की अलख जगाते रहे। इनकी देश भक्ति देख बाद में पत्नी भगवती ने भी राष्ट्र सेवा का मार्ग चुन लिया। भगवती को भी तीन बार जेल जाना पड़ा। दो बार मेवाड़ से बाहर भेज दिया गया। ऐसे में भूमिगत रहते हुए काम करती रहीं। प्यारचंद मेवाड़ व उस वक्त कांग्रेस में बड़े प्रभावशाली थे। वे चाहते तो बड़ा पद ले सकते थे लेकिन उन्होंने जीवंत पर्यन्त राष्ट सेवा को ही अपना लक्ष्य बनाए रखा।
भीलवाड़ा जिले के पुर निवासी प्यारचंद ने अंग्रेजों से लोहा लेने में खास भूमिका निभाई थी। मेवाड़ क्षेत्र में आंदोलनकारियों का नेतृत्व करने वालों में हुए प्रमुख थे यही वजह है कि आज भी बड़े फक्र के साथ इनका नाम राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानियों में लिया जाता है। यह विश्नोई समाज के लिए भी बड़ा गर्व और गौरव का विषय है।
प्यारचंद का का जन्म श्री नारायण विश्नोई के घर हुआ था। बचपन से ही बड़े तेजस्वी रहे। मिडिल तक भीलवाड़ा में पढ़ने के बाद उदयपुर स्थित ब्रह्मचार्यश्रम के छात्रावास में रहकर हाईस्कूल में पढ़े। यहां रहते साथी स्टूडेंट इनकी दिनचर्या से बहुत प्रभावित हुए। सुबह जल्दी उठकर स्नान, हवन व भजन आदि संस्कारों को यहां पौषित करते गए। कुश्ती और व्यायाम में खास रुचि थी। यहां रहते हुए ही वे देश भक्ति की ओर मुड़े। इनके पिता के मित्र पंडित भूरीलाल उपाध्याय, जो गांधी भक्त थे, के संपर्क में आए और राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत साहित्य पढ़ने लगे। इसी बीच परिवार के आग्रह पर शादी के लिए गांव आना पड़ा। 25 वर्ष की आयु में वे भगवती विश्नोई के साथ परिणय सूत्र में बंध गए। मगर इनके मन में देश भ थी। वे उदयपुर में संचालित भारत सेवा समिति के स्काउट बन गए। फिर मेवाड़ राज्य के पहले रोवर बने। बरसों तक उदयपुर व अजमेर में खादी का काम किया। उन्हें कभी छह महीने तो कभी इससे ज्यादा समय के लिए इन्हें जेल में डाला गया। लेकिन इन्होंने एक बार भी पुलिस से माफी नहीं मांगी। उल्टे इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाने शुरू कर देते थे, माफी मांगने से इनकार करने पर जेल में उन्हें बिजौलिया राव के घोड़ों के लिए प्रतिदिन तीन मण चने दलने पड़ते थे। जेल अधिकारियों में इनका खौफ इतना था कि हजामत करते वक्त इनके हाथ पीछे बांध दिए जाते थे। जेलों में लोकनायक जयनारायण व्यास व माणिक्यलाल वर्मा के साथ रहे।
मैं देश के लिए अर्पित होने सत्याग्रह में जा रहा हूं। जीवित लौटा तो ठीक है, नहीं तो आपकी सेवा के लिए मेरा छोटा भाई देवीचंद तैयार है। मेरा विवाह हो गया है, किंतु यदि मैं वापस नहीं लौटा तो मेरी पत्नी का पुनर्विवाह करा देना।
ये चंद लाइनें उस पत्र की है, जो वर्ष 1930 में मेवाड़ राज्य के प्रमुख क्रांतिकारी प्यारचंद विश्नोई ने उदयपुर में रहते अपने पिता नारायणराम विश्नोई को लिखा था। यहीं से वे देश के लिए पूरी तरह समर्पित हो गए। उन्होंने कई आंदोलनों व सत्याग्रह को नेतृत्व प्रदान किया। अंग्रेजों की यातनाएं सहीं। बार-बार जेल गए। एक बार उन्होंने अपने पास पड़े अतिरिक्त कपड़े और सामान को एक सहपाठी के साथ अपने गांव पुर भिजवाया। घरवालों ने सोचा कि प्यारचंद की मृत्यु हो गई है, घर में शोक का वातावरण सा बन गया लेकिन सहपाठी ने परिजनों की शंका का तुरंत ही निवारण कर दिया।
स्वतंत्रता सेनानी प्यारचंद विश्नोई के जीवन की वो बातें जो हमें सीखनी ही चाहिए
- देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्ति दिलाने के संघर्ष में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। बहुत सी जगह गए. का नेतृत्व करने वालों में आंदोलनों का नेतृत्व किया लेकिन कैसी भी परिस्थिति में वे वे प्रमुख थे। यही वजह गुरु जंभेश्वर के बताए रास्ते से नहीं डिगे। हर कदम पर उन्होंने 29 नियमों को अपनी ताकत बनाए रखा।
- उस दौर में उन्होंने सामाजिक कुरीतियों को त्यागने राजस्थान के स्वतंत्रता की हिम्मत दिखाई थी। माताश्री झमकू बाई व पिता श्री के के पीछे मृत्युभोज नहीं किया बल्कि खुद को मिली स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सम्मान पेंशन के आठ हजार रुपयों से पिता की स्मृति में पुर गांव में श्री नारायण पुस्तकालय वाचनालय भवन का निर्माण करवाया। इसे आज गौरव है। उनका जन्म भी भीलवाड़ा नगर परिषद चला रही है।
मूल लेख : समराथल न्यूज़ पोस्ट