मरते दम तक करेंगे जीवों की रक्षा: मोखराम धारणिया
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वन्य जीव हिरण का इलाज करवाते मोखराम धारणिया |
बिश्नोई समाज में जीव रक्षा करना एक ऐसा कार्य है जो उनके धर्म व कर्म दोनों से आवश्यक है।गुरु जम्भेश्वर महाराज ने भी अपने 29 नियमों में जीव रक्षा करना बताया है। बिश्नोई समाज हमेशा जीवों और वृक्षों की रक्षा के लिए तत्पर रहा है। ऐसी ही शख्सियत बीकानेर बिश्नोई समाज में भी है। जिनके बारे में लोगों की धारणा है कि जीवों की रक्षा करने के लिए ही इस व्यक्ति ने जन्म लिया है। इस शख्सियत का नाम मोखराम बिश्नोई है। बीकानेर जिले में शिकारियोँ की नाक में दम करने वाला यदि को दम करने वाला यदि कोई है तो वह मोखराम बिश्नोई ही है । हरिणों को शिकार करने वाले बावरिये शिकार तो जरूर करते हैं लेकिन उन्हें डर क्षेत्रवासियोँ से नहीं, पुलिस प्रशासन से भी नहीं बल्कि मोखराम बिश्नोई से रहता है। पशु-पक्षियों में प्रेम बाँटना और शिकारियोँ को खौफ में रखना ही अब मोखराम का मकसद बन गया है। मोखराम बिश्नोई सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा तो लेते ही हैं लेकिन प्रमुख रूप से जीव रक्षा संस्था बीकानेर (रजि.) के अध्यक्ष भी है । मोखराम बिश्नोई से बातचीत के कुछ अंश।
वन्य जीवों की सुरक्षा हेतु अभियान चलाने का विचार कब आया?
सन् 1996 में बादनूं जिले की रोही में बड़े पैमाने पर हो रहे हरिण शिकार की घटना के समय में मैं अपने मित्र "निहालचंद" के साथ उन शिकारियों को पकड़वाने के लिए गया था, लेकिन शिकारियों ने हम पर हमला कर दिया और मेरे सामने ही मेरे मित्र निहालचंद पर उन शिकारियोँ ने गोली चला दी। यह घटना मेरे मन को झकझोर गई। मुझे ऐसा लगा कि जिस व्यक्ति ने जीव रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्योंछावर कर दिए ऐसे व्यक्ति को सच्ची श्रद्धांजलि तब ही दी जा सकती है जब उसके अधूरे छोड़े कार्य को पूरा किया जाए। दोस्त की सहादत का असर मुझ पर ऐसा पड़ा कि मैंने उसी समय प्रण ले लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए अब शिकार करने वालों की खैर नहीं।
शिकारियोँ से संघर्ष कहीं मुसीबत तो नहीं बना ?
मेरा कर्म और धर्म दोनों ही जीवों की रक्षा करना है। अब मेरे इस पुण्यकर्म में यदि कोई मुसीबत आती है तो में उसका सामना डटकर करता हूँ। अनेक स्थानों पर शिकारियोँ से संघर्ष के दौरान मेरे साथ मारपीट हुई है तथा कई बार जान से मारने की भी धमकी दी जाती हैं, लेकिन यह तो सर्वविदित है कि 'डर' तो हमारे बिश्नोई समाज में नहीं है। हमारे पुरखोँ ने खेजङली के लिए हँसते-हँसते सर कटवा दिए तो मेरे साथ होने वाली मारपीट-धमकियाँ मेरे पुरखो के आगे कुछ भी नहीं है। हां शिकारियोँ द्वारा मुझ पर कई मुकदमे दर्ज करवाए गए है,लेकिन मैं मुझे नहीं हटनें वाला।
घायल वन्य जीवों की रक्षा कैसे करते हो और प्रशासन की क्या व्यवस्था है?
हमारे द्वारा संचालित जीव रक्षा संस्था के पास उड़नदस्ता वाहन है जो सूचना मिलने पर घायल पशु-पक्षियों को जिला पशु चिकित्सालय में लाकर इलाज करवाता है। यहां से इलाज के बाद चिड़ियाघर या मुकाम गौशाला में भेज दिया जाता है। पशुचिकित्सालय में कभी-कभी संसाधनों के अभाव मेँ घायल जीव का उपचार नहीं हो पाता और वह मर जाता है।इससे दुःख होता है। पुख्ता व्यवस्था व संसाधनों की कमी बहुत खलती है। संस्था की यह माँग है कि राज्य सरकार ने पालतू पशुओं की दवा-चिकित्सा मुफ्त उपलब्ध करवा रखी है उसी तरह वन्य जीवों का भी इलाज मुफ्त में हो ऐसी व्यवस्था हो तो बेहतर होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में पशु चिकित्सा की सुविधा न के बराबर है । भला चिकित्सालयों में पर्याप्त कर्मचारी नहीं है और कोई खैर-खबर लेगा भी कौन? क्योंकि यदि इंसानों के अस्पताल में कोई कमी हो तो लोग धरने-प्रदर्शन करके अपनी सुविधाएँ मुहैया करवा लेते है लेकिन बेचारे पशुओं की कौन सुने। चिड़ियाघर भी कार्मिकों की उदासीनता के चलते व्यवस्थित नहीं है।
जीव रक्षा के लिए वन विभाग क्या कर रहा है?
वन विभाग जीव रक्षा के लिए 'शून्य' की तरह ही है। वन विभाग बिल्कुल भी सक्रिय नहीं है। कोई भी शिकारी पकड़वाने की बड़ी कार्रवाई कभी नहीं की। कर्मचारी भी अपने कार्य के प्रति जागरूक नहीं है। सरकार ने भी इनकी जागरूकता के लिए कोई ठोस कदम कभी नहीं उठाए। कर्मचारियों से जब इसके बारे में कहा जाता है तो संसाधनों की कमी का रोना रोया जाता है। जबकि हमारी संस्था के पास भी ने कोई विशेष संसाधन नहीं है, लेकिन हमारी इच्छा शक्ति प्रबल है।
हमारे संस्था के सदस्य पूरे जिले में कहीं भी, कभी भी शिकार की सूचना मिलने पर तुरंत पहुँच जाते है और शिकारियोँ को पकड़वाने तथा घायल हुए जीवों की रक्षा करती है। यह हमारा सामाजिक कार्य है, जबकि वन विभाग के कर्मचारियों को इसका वेतन मिलता है फिर भी निष्क्रिय रहते है।
साभार: बिश्नोई नव संदेश अखबार