मुक्तिधाम मुकाम आसोज मेला
बिश्नोई समाज के प्रवर्तक सद्गुरु जंभेश्वर भगवान के परमधाम गमन के बाद बिश्नोई पंथ/सम्प्रदाय को सम्भालने वाले संत शिरोमणि वील्होजी महाराज ने संवत 1648 (सन् 1591) में मुकाम में आसोज बदी अमावस्या को मेला शुरू किया था। मेले का मतलब है मिलना, मेल-मिलाप करना। देश में दूर-दूर तक फैले हुए समाज को आपस में जोड़कर रखने में ये मेले महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
पहले के जमाने में जब आवागमन के साधनों का अभाव था तो सगे-संबंधियों के सुख -दुःख के समाचार मिलने में ही महीनों और वर्ष लग जाते थे तब ये मेले ही संदेशों के आदान-प्रदान का जरिया होते थे। इन मेलों में धार्मिक सम्मेलन होते जहाँ लोग साधु- संतों से धर्म का मर्म समझते और अपने जीवन में जाने-अनजाने में आई बुराइयों को त्याग कर दृढ़ता से धर्म के पथ पर चलने का संकल्प लेते थे। यहाँ सामाजिक गोष्ठियां होती, इनमें समाज की व्यवस्था पर समाज चिंतन करता था, समाज की मर्यादा को भंग करने वालों को पंच लोग दंड का विधान करते थे, जिसे मानना सबके लिए अनिवार्य था और लोग आदरपूर्वक आज्ञापालन करते थे। इन मेलों में रिश्ते और शादियां तय की जाती थी। मेलों में लगने वाले बाजार से लोग रोजमर्रा के घर में काम आने वाले सामान के अतिरिक्त खेती के औजार, बीज और पशुधन की खरीददारी भी करते।
बदलते परिवेश में अब मेलों का स्वरूप बदल गया है, आवागमन के साधनों की भरमार है, मित्र, भाई-बंधुओं के समाचार पल-पल में फोन पर मिलते रहते हैं। पर एक चीज उसी प्रकार बरकरार है वह है मेले का चाव और भगवान श्री जाम्भोजी के प्रति श्रद्धाभाव। हालाँकि जमाने के जोर से लोगों के आपसी संबंधों में आत्मियता घटी और औपचारिकता बढ़ी है फिर भी लोग मेल-मिलाप को अहमियत देते हैं। उसी प्रकार बाजार सजते हैं और लोग खरीददारी करते हैं, कुछ हस्तशिल्प की वस्तुएँ तो शहरों में नहीं मिलती जो इन मेलों में मिल जाती है। धार्मिक-सामाजिक सम्मेलन होते हैं जहाँ लोग वक्ताओं को बड़े ध्यान सुनते हैं। साधु-संतों की साप्ताहिक कथाएँ चलती है।
विभिन्न प्रकाशक अपनी पुस्तकों और पत्रिकाओं की स्टाॅल लगाते है जहां से मेलार्थी जांभाणी साहित्य से जुड़ी पुस्तकें खरीदते हैं। विशाल हवन-कुंडों में प्रज्जवलित अग्नि की आसमान को छूती धूम्र-ध्वजा मेले को अलौकिकता प्रदान करती है। ध्वल वस्त्र और टोपी पहने सेवक दल के अनुशासित सेवक बन्धु यात्रियों के भोजन और मेले की अन्य व्यवस्थाओं को इतने सुचारु रूप से चलाते हैं जो मेले में चार चांद लग जाते हैं। मुकाम से समराथल तक पैदल यात्रा, बीच में गोदर्शन एवं सेवा लाभ पुण्य प्रदान करता है। आंगतुकों, नेताओं, मेहमानों का स्वागत करती समाज की सर्वेसर्वा संस्था बिश्नोई महासभा हालांकि अब धीरे-धीरे राजनीतिकरण की ओर बढ़ने लगी है। फिर भी महासभा सरपरस्ती में चलने वाला मेला आज भी मन मोह लेता है और बरबस ही पांव मेले की ओर खींचे चले जाते हैं।
मुक्तिधाम मुकाम आसोज मेला 2022
इस बार मुक्ति धाम मुकाम आसोज मेला 24 सितम्बर से 27 सितंबर को लगेगा। इस बार मेले में आने हेतु महासभा अध्यक्ष देवेंद्र बिश्नोई ने नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को नियंत्रित किया है। इस बार 2 वर्ष के पश्चात बिश्नोईयों के वार्षिक मेले में धर्मसभा का आयोजन किया जाएगा व हाट-बाजार सजेगा।