जम्भवाणी दर्शन : थोड़े माहिं थोड़े रो दीजै, होते नाहिं न कीजै | दान की महिमा : गुरु जाम्भोजी
थोड़े माहिं थोड़े रो दीजै । होते नाहिं न कीजै । ।
सद्गुरु जाम्भोजी दान की महता बतलाते हुए कहते हैं, हे लोगों! सात्विक वृत्ति से उपार्जित आय में से ज्यादा नहीं तो थोड़े में से थोड़ा ही जरुरत मंद सुपात्र को दो, परन्तु होते हुए इंकार मत करो ।
कृष्ण माया तिहूं लोका साक्षी । अमृत फूल फलीजै । ।
जो कुछ भी हमारे पास है वह हमारा नहीं बल्कि श्री हरि(विष्णु) का है हम तो निमित साधन मात्र हैं, ऐसा जानकर देता है । ऐसे निवण स्वभावी द्वारा दिया दान अमृत के रूप में फलित होता है ।
जोय जोय नांव विष्णु के दीजै । अनन्त गुणा लिख लीजै । ।
जो कुछ भी हमारे पास है, वह सृजनहार सांवरें (इदं न मम) का है । इसी भाव (दान देते समय गर्दन झुकी व हाथ उठे हो) से जो देता है । उसका दिया दान अक्षय हो जाता है ।
- गुरु जाम्भोजी
ईश्वर भी उन्हीं को देते हैं, जो विनम्र हों और देने की इच्छा रखते हों । जब हम त्याग की इच्छा करते हैं, तो मालिक अपने-आप हमें देने योग्य बनाता है । कहा भी गया है 'बांटनवारे को लगै ज्यों मेंहदी को रंग' अर्थात् मेंहदी बांटने वाले के हाथों में स्वत् ही मेंहदी रच जाति है इसी प्रकार हम ईश्वर प्रदत्त इहलोकिक वस्तुओं का त्याग करेंगे तो वह स्वत स्पुर्त हो जाएंगी।