गुरु जाम्भोजी : मानवीय मूल्य व पर्यावरण संरक्षक
भारत भूमि सदैव से ही संत, महापुरुषों एवं ऋषि मुनियों की रमणस्थली रही है। यहाँ जप, तप एवं त्याग की प्रधानता रही है। मानवता जब-जब सांसारिकता के भंवरजाल में फँसकर अपने पथ से भटकी है तब-तब इन देवदूतों ने नाना रूपों में अवतार धारण कर अपने दायित्व का निर्वाह किया है। ऐसे ही देवपुरुष, बिश्नोई पन्थ के प्रवर्तक, धर्म-नियामक व समाज सुधारक गुरु जम्भेश्वर जी हैं।
इनका अवतरण राजस्थान के नागौर जिले के पीपासर गाँव में विक्रम सम्वत् 1508 (सन् 1451) भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को हुआ था। उनके पिता का नाम लोहटजी व माता का नाम हंसादेवी था। विश्नोई पंथ में जाम्भोजी को विष्णु का अवतार मानकर उनकी आराधना की जाती है।
गुरु जम्भेश्वरजी ने वि.सं. 1542 ( सन् 1485) की कार्तिक कृष्ण अष्टमी को समराथल धोरे पर कलश स्थापित कर हवन करके, अभिमंत्रित जल, जिसे 'पाहळ' कहते है, पिलाकर विश्नोई पंथ की स्थापना की। 29 नियमों की आचार संहिता प्रदान की चारों वर्णों के लोग जिन्होंने 29 नियमों के पालन का संकल्प लिया वे विश्नोई कहलाये। गुरु जाम्भोजी के बताए 29 नियम मानव जाति के कल्याण व लोक मंगल की भावना से मण्डित हैं।
29 नियमों की आचार संहिता इस प्रकार है:
- तीस दिन तक सूतक रखना।
- पाँच दिन तक रजस्वला स्त्री को गृह कार्यों से अलग रखना।
- प्रातः काल स्नान करना।
- शील, सन्तोष व शुद्धि रखना।
- द्विकाल सन्ध्या करना।
- सायं को आरती करना।
- प्रातः काल हवन करना।
- पानी, दूध, ईन्धन को छानबीन कर प्रयोग में लेना।
- वाणी शुद्ध व मधुर बोलना।
- क्षमा ( सहनशीलता ) रखना।
- दया (नम्रता) से रहना।
- चोरी नहीं करना।
- निन्दा नहीं करना।
- झूठ नहीं बोलना।
- वाद-विवाद नहीं करना।
- अमावस्या का व्रत रखना।
- विष्णु का भजन करना।
- जीवों पर दया करना।
- हरे वृक्ष नहीं काटना।
- काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार आदि को वश में रखना।
- अपने हाथ से रसोई बनाना।
- थाट अमर रखना।
- बैल बधिया न करना।
- अफीम नहीं खाना
- तम्बाकू खाना-पीना नहीं।
- भाँग नहीं खाना।
- मद्यपान नहीं करना।
- मांस नहीं खाना
- नीले वस्त्र नहीं पहनना।
बिश्नोई समाज के 29 नियम व्याख्या सहित पढ़ें
गुरु जाम्भोजी ने आमजन की बोल चाल की भाषा में जनता को अनेक 'सबदों' के माध्यम से उपदेशित किया जिनमें 120 सबद संकलित हैं जिसको 'सबदवाणी' या 'जम्भवाणी' कहा जाता है।
सबदवाणी/जम्भवाणी दर्शन को विस्तृत रूप से पढ़ने के लिए क्लिक करें 👈
पाछा खिसियां पण घंटे, गुरु जाम्भोजी की आण सिर साटै रूंख रहे, तो भी सस्तो जाण।।
हवन: गुरु जाम्भोजी ने मन की शुद्धि व पर्यावरण की शुद्धि के लिए प्रातः काल में करना अनिवार्य बताया।
'होम हित, चित प्रीत सूं होय बास बैकुण्ठा पावों।' गुरु जाम्भोजी प्रतिपादित द्वारा यज्ञ का पालन आज भी विश्नोई समाज द्वारा 'सबदवाणी' के सस्वर उच्चारण के साथ किया जाता है।
नशा: गुरु जाम्भोजी ने उत्तम स्वास्थ्य के लिए सभी प्रकार के नशे को वर्जित बताया। नशा मनुष्य को खोखला कर देता है।
सत्संग: गुरु जाम्भोजी ने उत्तम संगति करने की सीख तथा सबदवाणी में कहा है कि 'लोहा नीर किसी विध तरिबा, उत्तम संग सनेहु ।'
जिस प्रकार लकड़ी की संगति से लोहा समुद्र के पार तैर सकता है ठीक उसी प्रकार उत्तम लोगों की संगति से मनुष्य को लाभ मिलता है।
खान-पान: गुरु जाम्भोजी ने सबदवाणी में शाकाहारी व सात्विक भोजन को उत्तम बताया जिससे मन व बुद्धि शुद्ध रहती है।
आत्म-अनुशासन: 'पहले किरिया आप कमाइये, तो औरां ने फरमाइये।' सबदवाणी में गुरु जाम्भोजी ने कहा है कि दूसरों को उपदेश देने से पहले अपने आप का सुधार करना जरूरी है।
विनम्रता: 'जो कोई आवे हो-हो करतो, तो आपन होइये पाणी। गुरु जाम्भोजी ने सबदवाणी में कहा है कि यदि कोई गुस्से में आता है तो आप जल के समान शीतल हो जाइये।
वाणी पर संयम: गुरु जाम्भोजी ने सबदवाणी में कहा है कि 'सुवचन बोल सदा मुहलाली' अर्थात्-अच्छे वचन बोलोगे तो सदा खुशहाली रहेगी।
अहिंसा : गुरु जाम्भोजी ने मन, बचन व कर्म से किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं देने का कहा जाता है।
शौच: गुरु जाम्भोजी ने शरीर व मन की पवित्रता को शौच कहा है। जल से शरीर शुद्ध होता है व मन सत्य बोलने से शुद्ध होता है। •विद्या व तपस्या से जीवात्मा शुद्ध होती है।
गुरु जाम्भोजी: 'रूंख लीलो नहीं घावे'
गुरु जाम्भोजी प्रथम पर्यावरणविद् थे जिन्होंने आज से 532 वर्ष पूर्व हरे वृक्ष नहीं काटने व पर्यावरण की रक्षा का संदेश दिया था। विक्रम संवत् 1787 (सन् 1730) को जोधपुर रियासत में खेजड़ली गाँव में अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में 363 बिश्नोई नर-नारियों ने अपना ने. बलिदान दे दिया। लेकिन पेड़ों को नहीं काटने दिया। जिनमें 269 पुरुष व 94 महिलाएं थी। सम्पूर्ण विश्व को पर्यावरण के लिए इस बलिदान से प्रेरणा लेनी चाहिए। जीव रक्षा, वृक्षरक्षा और प्रकृति संरक्षण के लिए विश्नोई समाज लगातार बलिदान देता रहा है।
Bishnoi Movement : खेजड़ली बलिदान पर आधारित ब्लॉग पढ़ें 👈
गुरु जाम्भोजी की सांस्कृतिक चेतना अत्यन्त ही प्रबल है। भारतीय संस्कृति के सभी मूल तत्व उनके धर्म नियमों व वाणी में विवेचित हुए हैं। उन्होंने भारतीय संस्कृति के प्राचीन श्रेष्ठ आस्थाजन्य मूल्यों को स्थापित किया। तत्कालीन समाज की जड़ता को दूर कर परम्परागत मूल्यों, आदशों का युगीन आस्थाओं के साथ सुन्दर समन्वय किया है, जो सार्वकालिक प्रासंगिक व प्रेरणादायी है।
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