गोडावण : बिश्नोई गौरव का ऐतिहासिक प्रतीक
The Great Indian Bustard: A historic symbol of Bishnoi pride
सऊदी अरब का राजकुमार बदर (Prince Badr of Saudi Arabia) (Badr bin Abdulaziz Al Saud) जिसकी 1 अप्रैल 2013 को 81 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गयी. सन 1978 में भारत-यात्रा पर आया. 1932 ई. में जन्मा राजकुमार बदर सऊदी अरब के राजा अब्दुल अजीज का बीसवां पुत्र था. अपनी इस भारत यात्रा के दौरान उसे पता चला की राजस्थान के जैसलमेर में उसका पसंदीदा क्रीडा पक्षी (Game bird) गोडावण (Great Indian Bustard) बहुतायत में पाया जाता है. गेम बर्ड उन पक्षियों को कहते हैं जिनका प्रशिक्षित शिकारी बाजों से (Falcon) शिकार करवा कर मनोरंजन किया जाता है. चीन में लगभग चार हजार वर्ष पूर्व विकसित यह खेल सिकंदर महान (Alexander the great) व चंगेज़ खान का प्रिय खेल था.
पेट्रोलियम राजनीति के तहत मिली कूटनीतिक छूट (Diplomatic immunity) का लाभ उठाते हुए राजकुमार बदर ने अपने प्रशिक्षित शिकारी बाजों के साथ रामगढ, जैसलमेर के पास 27 दिसम्बर, 1978 को गोडावण के शिकार के लिए डेरा डाल दिया.
पक्षी के शिकार के इस खेल का समाचार शीघ्र ही निकट के बिश्नोई बहुल गावों में फ़ैल गया. पूरा स्थानीय बिश्नोई समुदाय इस पाशविक घटनाक्रम के विरूद्ध लामबंध हो गया और बिश्नोईयों ने चारों दिशाओं से घटनास्थल की ओर कूच कर दिया. गोडावण के शिकार का पुरजोर विरोध जताया गया.
किन्तु प्रशासन क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय एंव अति महत्वपूर्ण अतिथि बदर की सुरक्षा में लगा था इसलिए बदर पर बिश्नोई समुदाय के विरोध का प्रभाव नही पड़ा.
तथापि बिश्नोई अपने विरोध पर अडिग रहे. बिश्नोई समुदाय का यह विरोध बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (Bombay Natural History Society), वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड इंडिया (WWF-India) और कुछ अन्य संगठनों की सहायता से देश के प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित हो गया. इन संगठनों ने जयपुर से लेकर दिल्ली तक शिकार और बदर के विरोध में रैलियां निकाली एंव प्रदर्शन किया. जैन समाज का भी शिकार-विरोध के इस पुरे घटनाक्रम में अभूतपूर्व योगदान रहा.
दिल्ली में तत्कालीन विदेश मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपई के आवास तथा इंडिया गेट पर भी प्रदर्शन हुए. शिकार को तुरंत न रोके जाने की स्थिति में बिश्नोई युवाओं ने आत्मदाह करने की चेतावनी दे डाली.
इस पुरे घटनाक्रम का राजस्थान उच्च न्यायलय ने संज्ञान लिया और 2 जनवरी 1979 को अपने एक आदेश में सऊदी राजकुमार को गोडावण का शिकार करने से प्रतिबंधित कर दिया.
आखिर भारत सरकार हरकत में आई और अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली से जैसलमेर आये. बदर को बिश्नोई एंव जैन समुदाय और उपर वर्णित संगठनों के विरोध के सामने झुकना पड़ा और उसे वापस बुला लिया गया.
इसी घटना से प्रेरित होकर सन 1980 में अंतर्राष्ट्रीय गोडावण संगोष्ठी (International Symposium on the Great Indian Bustard) जयपुर में आयोजित की गयी और 01 नवंबर, 1980 को भारत सरकार ने इसके स्मारक-स्वरुप गोडावण पक्षी पर 2.30 रूपये का डाक टिकट जारी किया. इस प्रकार गोडावण पक्षी सदा-सदा के लिए बिश्नोई शौर्य, सम्मान एंव गर्व का प्रतीक बन गया.
किन्तु दुर्भाग्य से वर्तमान में इसकी संख्या सिमट कर केवल दो सौ रह गयी है. गंभीर खतरे में पड़ी यह प्रजाति सम्पूर्ण लुप्तता (Absolute extinction) का सामना कर रही है. स्वतंत्रता के पश्चात जब भारत के राष्ट्रीय प्रतीक तय किये जा रहे थे तो गोडावण भारत के राष्ट्रीय पक्षी (National Bird of India) का प्रबल दावेदार था एंव प्रख्यात पक्षी वैज्ञानिक डॉ सलीम अली ने इसका पुरजोर समर्थन भी किया था. किन्तु कई कारणों से मौर को राष्ट्रीय पक्षी के अधिक उपयुक्त माना गया.
भारतीय पर्यावरणीय इतिहास का ध्वजवाहक (The pioneer community of the environmental history of India) बिश्नोई समुदाय इस पक्षी को विलुप्तता (Extinction) से बचाने में पूर्णतया सक्षम है.
आईये कृष्ण मृग, चिंकारा, खेजड़ी, मौर इत्यादि के संरक्षण के हमारे गौरवशाली इतिहास में गोडावण पक्षी को भी सम्मिलित करें. क्योंकि इसका विलुप्त होना बिश्नोई इतिहास के एक गौरवशाली भाग के विलुप्त होने तुल्य होगा एंव ऐसा बिश्नोई समुदाय होने नही देना चाहेगा, ऐसा मैं विश्वास रखती हूँ.
आईये इस शानदार एंव विशाल चिड़िया को बिश्नोइज्म के पंख दें.
Highlights:
- गोडावण : बिश्नोई गौरव का ऐतिहासिक प्रतीक
- The Great Indian Bustard: A historic symbol of Bishnoi pride
- सऊदी अरब का राजकुमार बदर के गोडावण शिकार का बिश्नोई समुदाय द्वारा विरोध
- अंतर्राष्ट्रीय गोडावण संगोष्ठी : 1980
- गोडावण पक्षी पर डाक टिकट जारी : 1 नवंबर, 1980
- राजस्थान का राज्य पक्षी : गोडावण
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