आइए जाने पुर्व विधायक चौधरी चुन्नीलाल गोदारा के बारे में

आइए जाने पुर्व विधायक चौधरी चुन्नीलाल गोदारा के बारे में

आइए जाने पुर्व विधायक चौ. चुन्नीलाल गोदारा के बारे में



चौधरी चुन्नीलाल गोदारा
व्यक्तिगत जानकारी
पूरा नामचौधरी चुन्नीलाल गोदारा
जन्म1920
नारायण रामपुरा, पंजाब
माता-पिताश्रीमती केसरी देवी, चौ. पोला राम गोदारा
पत्नीश्रीमती सुरजी देवी
शिक्षा पांचवीं
धर्म हिन्दू (बिश्नोई) 
व्यवसाय
  • खेतीबाड़ी
  • ईंट उद्योग 
  • बस व्यवसाय
विधायकदूसरी विधानसभा (1957-1962) 
  • रायसिंहनगर विधानसभा क्षेत्र से निर्विरोध चुने गए।

मृत्यु13 मई, 1985
Ex MLA Choudhary Chunilal Godara



 चौधरी चुन्नीलाल गोदारा : जीवन परिचय


मूलतः लूणकरणसर से संबंध रखने वाले चौधरी चुन्नीलाल गोदारा का जन्म डेलाना गांव के चौधरी पोला राम के यहां हुआ। इनकी माता का नाम श्रीमती केसरी देवी था। मध्यमवर्गीय किसान परिवार से संबंध रखने वाले चुन्नीलाल गोदारा खेती-बाड़ी से लेकर एक निपुण व्यवसायी के रूप में उभर कर सामने आए। राजनीतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1957 में रायसिंहनगर विधानसभा क्षेत्र से निर्विरोध विधायक को बंद कर की। इन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन जन सेवा में बिताया।


चौधरी चुन्नीलाल गोदारा: पारिवारिक व राजनितिक पृष्ठभूमि


चौ. चुनीलाल के माता पिता व भाई व पूरा परिवार लूणकरणसर तहसील के डेलाणा गांव से आकर गांव बोलावाली तहसील सांगरिया राजस्थान में जमीन खरीद की और खेती का कारोबार किया। इनके भाई श्री सहीराम गोदारा भी लगातार 20 साल सरपंच रहे। इसके बाद सन् 1945 में रायसिंहनगर जिला श्रीगंगानगर के मुकलावा में (7 एन.पी) में जमीन ली और यहां खेतबाड़ी का, बसों का और ईट् के भटों का कारोबार किया और राजनितिक गतिविधियों में शक्रिय रूप से भाग लिया।

 राजस्थान की दूसरी विधानसभा के चुनाव वर्ष 1957 में चौधरी चुन्नीलाल गोदारा को कांग्रेस से पार्टी का टिकट रायसिंहनगर विधानसभा क्षेत्र से मिला। चौधरी चुन्नीलाल निर्विरोध विधायक बनकर प्रथम बार विधानसभा गए। इन्हें प्रथम निर्विरोध बिश्नोई विधायक होने का गौरव प्राप्त है। वर्ष 1962 में वह दुबारा विधायक नहीं बन सके,  श्री जोगेंद्र लाल हांडा उन्हें शिकस्त कर विधायक बने।

मोहनलाल सुखाड़िया के कार्यकाल में वर्ष 1970 में चौधरी चुन्नीलाल में किसानों की समस्याओं को लेकर जन आंदोलन का नेतृत्व किया। इस आंदोलन में उन्हें सरकार ने पकड़कर पाली जेल में रखा लेकिन आंदोलन की तीव्रता के चलते सरकार को किसानों के सामने झुकना पड़ा।

सन् 1980 में कांग्रेस छोड़ कर चौ. चरण सिंह के भूतपूर्व प्रधानमंत्री की पार्टी बि.के.डी. में शामिल हुए और इस पार्टी में राजस्थान सत्तर पर कार्य किया।बि.के.डी. का नाम बदल कर लोकदल रखा गया।जिसमें प्रान्त के उपाध्यक्ष रहे। श्री गोदारा के चौधर चरण सिंह के साथ घनिष्ट संबंध थे और चौधरी चरण सिंह दो बार रायसिंहनगर उनके आवास पर पधारे थे। प. नेहरू के प्रति उनकी बहुत श्रद्धा थी। सन् 1962 में कांग्रेस पार्टी के मनमुटाव के कारण उन्होंने पार्टी का टिकट नही मांगा तो प. नेहरू जी ने उन्हें दिल्ली बुलाकर कांग्रेस पार्टी की टिकट देकर चुनाव लड़ने को कहा। उनके चौधरी देवीलाल के साथ घनिष्ठ संबंद व मित्र थे। चौधरी चुन्नीलाल गोदारा को कुस्ती करने का बहुत शौक था। चौधरी देवीलाल और ये इकट्ठे कुस्तियां लड़ते-लड़ाते थे।


 

 चौधरी चुन्नीलाल गोदारा : शिक्षा एवं योगदान                    


चौधरी चुन्नीलाल गोदारा को खुद के कम शिक्षित होने पर मलाल था। उन्हें शिक्षा के क्षेत्र से विशेष लगाव रहा। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के बारे में विशेष जोर दिया। उनका कहना था कि यदि लड़की पढ़ जाये तो उसका सारा परिवार स्वभाविक ही पढ़ जाएगा। उनका मानना था कि गांव में शिक्षा का अभाव है। इसलिए उन्होंने मुकलावा व रामपुरा गांव में 10 वींं एग्रीकल्चर स्कूल पास करवाया और मुकलावा गांव में एस.टी.सी ट्रेंनिंग भी खुलवाई जो कि उन दिनों में असम्भव काम था। वो बेबाक शैली में बोलते थे। यही उनकी विशेषता थी।  


जब कुरजां पक्षी के शिकार का चौधरी चुन्नीलाल गोदारा ने विरोध किया


बिश्नोई परिवार में जन्म लेने से चौधरी चुन्नीलाल गोदारा का जीवों के प्रति दया का भाव होना स्वाभाविक था। उन्होंने महाराजा गंगा सिंह के समय कुरजां पक्षी के शिकार का विरोध कर अपने पूर्वजों के प्रेरक परंपरा का निर्वहन किया।

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 सन् 1935 की  घटना है! उन दिनों में राजा साल में 1 बार विरासत सम्भालने के लिए गांव में दौरा करते थे और इसी प्रक्रिया में राजा गांव बोलावाली में आए। उनके साथ में उनके दरबारी उनके सलाकार व सुरक्षा परहरी उनके साथ में थे। गांव की औरतों ने राजा का सम्मान किया। उन दिनों में शिर पर पानी का मेट रख कर गीतों से स्वागत करते थे। इस परम्परा का पालन करते हुए उनका मान सम्मान किया। लेकिन उनके साथ आये सुरक्षा परहरियों ने तलाब पर कूजोंं का छिप कर शिकार किया जब इस बात का चौधरी साहब को पता लगा तो उन्होंने इसका विरोद्ध किया। विरोद्ध करने पर उनको बीकानेर 15 दिन की काल कोठरी में डाल दिया गया। उस कोठरी में वो एकेले ही थे। 15 दिनों के बाद जब राजा श्री गंगासिंह को पूरी बात का पता लगा तो उन्होंने उनको से स-सम्मान बाहर निकाला और उनकी पीठ थप-थपाई की तुम निडर व सहासी हो। महाराज ने सुरक्षा परहरी को सजा दी और अपने दरबार से आदेश निकाला कि बिशनोईयोंं के गांव में कोई व्यक्ति हिरणों व कुर्जो का शिकार नही करेगा।

 

मृत्यु

जांभोजी के परम संदेश 'जीव दया पालनी' का दृढ़ता से पालन करने वाले व ताउम्र जनसेवा  करने वाले चौधरी चुन्नीलाल गोदारा का देहांत दिनांक 13 मई 1985 को  हृदय गति रुकने से हो गया।  आज वो भले ही इस संसार में नहीं है परंतु उनके प्रेरक कार्य कार्यों के कारण हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे ंं।

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