जन्माष्टमी 2023 : श्री कृष्ण व गुरु जंभेश्वर जन्मोत्सव विशेष
आज ही की मध्यरात्रि १२:०० बजे द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का अवतरण हुआ। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन ही मध्यरात्रि को श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान अवतरित हुए। जब श्रीकृष्ण अवतरित हुए तब उनके अवतार के निमित्त माता-पिता (देवकी-वसुदेव) मथुरा में कंस के कारागार में कैद थे, इसलिए वहाँ कोई उत्सव नहीं मना पाए। श्रीकृष्ण प्राकट्योत्सव गोकुल में मनाया गया। गुरु जम्भेश्वर भगवान ने अपने अवतार की तिथि जन्माष्टमी को इसलिए चुना कि कृष्णावतार का उत्सव अधूरा रह गया था जो अब कलियुग में पूर्ण हो जाएगा, जब जन्माष्टमी की मध्यरात्रि को गुरु जम्भेश्वर भगवान अवतरित हुए तब दिव्य उत्सव मनाया गया। बारिश न होने के कारण ऊसर हो चुकी भूमि भगवान के अवतार लेते ही उत्सवमय हो गई, उत्साहित हो गई, चहुंदिश हरियाली छा गई।
गुरु जम्भेश्वर भगवान के अवतार से पूर्व सामाजिक स्थिति
श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान के अवतार से पूर्व समग्र मानव समाज की स्थिति बहुत सोचनीय थी, उसमें भी मारवाड़ क्षेत्र बहुत अधिक धर्म से विमुख हो रहा था। शुष्क प्रदेश मारवाड़ में साधु-संतों का भी आगमन होता नहीं था, विद्वान भी तीर्थक्षेत्रों में रहते थे, ऐसी स्थिति में लोग धर्म को भूले जा रहे थे। तब गुरु जम्भेश्वर भगवान ने माता हँसा एवं पिता लोहट जी को निमित्त बनाकर पीपासर की दिव्य भूमि पर अवतार लिया। भगवान के अवतार लेते ही मानो ये धरती धन्य हो गई, आकाश से बारिश होने लगी, देवताओं की दुन्दुभियाँ बजने लगी, सकल जीव समुदाय आनन्दित हो गया।
भगवान जाम्भोजी ने मारवाड़ क्षेत्र को इसलिए चुना कि मारवाड़ के लोग श्रद्धालु तो बहुत है लेकिन दिशाहीन हो चुके है, अधर्म को धर्म समझ बैठे हैं। इन्हें सही दिशा देने की आवश्यकता है। समाज को सही दिशा गुरु दे सकते है। इसलिए गुरु जम्भेश्वर भगवान परमात्मा होते हुए भी, ईश्वर होते हुए भी अपने आपको भगवान से अधिक गुरु के रूप में स्थापित करते है। शब्दवाणी में सर्वाधिक "गुरु" शब्द की पुनरावृत्ति हुई है। शब्दवाणी में ६५ बार गुरु शब्द आया है। परमात्मा इसलिए मनुष्य बनते है कि मनुष्य भगवान से शिक्षा प्राप्त कर सके। जीव का जन्म कर्म वश होता है और परमात्मा अवतार करुणावश लेते है। अवतरण अर्थात् ऊपर से नीचे आना। अव्यक्त से व्यक्त होना। ईश्वर से मनुष्य बनना "लिन्ह मनुज अवतार"। श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान सात वर्ष तक मौन रहे। मौन रहकर भगवान ने यहाँ की स्थिति-परिस्थिति को जाँचा-परखा। श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान प्रथम बार बोले तब क्या तिथि थी यह स्पष्ट उल्लेख तो नहीं मिलता है लेकिन सन्तों का भाव है कि अवतार लेने के बाद सात वर्ष बाद बोले अर्थात् वि. स. १५१५ में इसी दिन जन्माष्टमी के दिन ही बोले। जिस प्रकार श्रीकृष्ण के मुख से निश्रित श्रीमद्भगवद्गीता की जयन्ती मनाई जाती हैं उसी प्रकार पञ्चम वेद 'श्री शब्दवाणी' की भी जयन्ती इसी (जन्माष्टमी/जम्भाष्टमी) के दिन मना सकते है।
श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान ने अन्य अवतारों की तरह इस अवतार में कोई बाह्य अस्त्र-शस्त्र धारण नहीं किया। स्वयं अपनी वाणी में कहते है:
ज्ञान खड्गु जथा हाथे, कौण होयसी हमारा रीपु
मेरे पास ज्ञान रूपी खड़ग है, मेरा शत्रु कोई नहीं हो सकता। गुरु जम्भेश्वर भगवान की दृष्टि अति सूक्ष्म है। भगवान कहते है बाह्य शत्रु तो कालान्तर में मित्र भी बन सकते है अथवा नष्ट भी हो सकते हैं, मनुष्य को खतरा बाह्य शत्रुओं से अधिक भीतरी शत्रुओं से है। जिसने अन्दर के अवगुण रूपी शत्रुओं का शमन कर लिया वो विश्व विजेता बन गया। इस धरती पर कई लोग ऐसे है जो सम्पूर्ण पृथ्वी को जीत लेने का सामर्थ्य रखते है लेकिन वो अपने आप को नहीं जीत पाते। भगवान ऐसे मदान्ध लोगों के लिए कहते है ज्ञान रूपी खड्ग को धारण करो। गुरु जम्भेश्वर भगवान ने अपने अवतार काल के समय में सर्वाधिक समय शब्दोपदेश के लिए दिया। इक्यावन वर्ष तक भगवान जाम्भोजी ने शब्द ही शब्द कहे। ये शब्द कोई सामान्य नहीं है, ये शब्द ब्रह्म है, ब्रह्मवाक्य है, ब्रह्मवाणी है। वेदों के अति गम्भीर एवं गूढ़ रहस्यों को मारवाड़ी भाषा में प्रकट कर दिया, कहा भी है
मोरे उपाख्यान वेदूँ।
इन शब्दों में दिव्य ज्ञान भरा हुआ है। हमारे अज्ञानान्धकार की निवृत्ति ज्ञान के प्रकाश से ही सम्भव है। ज्ञान के समान कुछ भी पवित्र या बड़ा नहीं है "न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते"। मोह में फंसा जीव ज्ञान के द्वारा ही मुक्त हो सकता है, बिना ज्ञान के मुक्ति सम्भव नहीं है, "ऋते ज्ञानान्न मुक्ति:"।
गुरु जंभेश्वर भगवान के श्री मुख से उच्चरित परम संदेशों की अमूल्य निधि है शब्दवाणी
मैं एक बार फिर दोहरा रहा हूँ गुरु जंभेश्वर भगवान के समग्र अवतार में सर्वाधिक मूल्यवान कोई बात या वस्तु है तो वो है "शब्दवाणी"। मानव समाज के लिए सर्वविद् कल्याणकारी एवं अक्षरस: अनुकरणीय है "शब्दवाणी"। बिश्नोई पन्थ के लिए शब्दवाणी से बड़ा कुछ भी नहीं है। बिश्नोई पन्थ के पथिक भाग्यशाली हैं कि भगवान ने विशेष करुणा करके ऐसा अद्भुत और अलौकिक ग्रन्थ प्रदान किया है, भगवान के अवतार के कई निमित्त कारण होते है पूर्णतया कोई नहीं जान पाता, पूरा केवल भगवान ही जानते है। मुझे गुरु कृपा से ऐसा लगता है कि गुरु जम्भेश्वर भगवान का अवतार समाज को "शब्दवाणी" का दिव्य ज्ञान प्रदान करने के लिए हुआ हैं।
आओ इस जन्माष्टमी/जम्भाष्टमी के पावन अवसर पर हम अपने जीवन में "शब्दवाणी" धारण करने का सद्प्रयास करें। "शब्दवाणी" का उच्चारण भी करें और "शब्दवाणी" का आचरण भी करें।
ऐसी मंगलभावना के साथ भगवान को बारम्बार प्रणति निवेदित करते हए आप सभी के कल्याण की कामना के साथ सभी भक्तों को सादर शुभकामनाएं.....!
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