गुरु जाम्भोजी और मानव स्वास्थ्य | Guru Jambhoji Aur Manav Swasthya | जय खीचड़

गुरु जाम्भोजी और मानव स्वास्थ्य | Guru Jambhoji Aur Manav Swasthya


गुरु जाम्भोजी और मानव स्वास्थ्य


मानव स्वास्थ्य के विवेचन का आधार
आर्थिक विकास की माप में सम्मिलित चर में से जीवन प्रत्याशा, पोषण का स्तर, मानव स्वास्थ्य का विवेचन।


जीवन के क्रिया कलापोँ को संपन्न करने में मानव निरंतर पर्यावरण को प्रभावित करता है ।
अपर्याप्त आहार, रोग उत्पन्न करने वाले सूक्ष्म जीव, पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले प्रदूषक पदार्थ (मादक पदार्थ तथा शराब) मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले बाह्य घटक के अंतर्गत आते हैं । इनसे जनित लोगों के लिए उपचार है - पूर्ण संतुलित आहार, स्वच्छ पर्यावरण तथा ऐसी सामाजिक परंपराएं जो अच्छा आदतों को प्रोत्साहन देती हों । 

गुरु जाम्भोजी की शिक्षा में मानव स्वास्थ्य


गुरु जाम्भोजी ने विष्णोइ विचारधारा (Bishnoi Samaj) का प्रतिपादन कर मानव समाज के चहुँमुखी विकास का मार्ग प्रस्त किया। गुरु जाम्भोजी का दर्शन व्यापक था । उन्होंने मानव स्वास्थ्य के महत्व को महत्ता दे अपने दिव्योपदेशोँ और विष्णोइ विचारधारा की आचार संहिता ( 29 नियम ) में मानव स्वास्थ्य संबंधी महत्वपूर्ण नियम प्रतिपादित  किए । एक स्वस्थ व्यक्ति दीर्घायु तक कर्मशील रहकर देश के वित्त-हित(आर्थिक विकास) में सहायक सिद्ध होगा ।


गुरु महाराज द्वारा प्रतिपादित बिश्नोई पंथ संहिता( 29 धर्म नियम ) का प्रथम- द्वितीयद्वय नियम नारी स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है । स्नान से संबंधी तृतीय नियम अनेक दृष्टियोँ मानव के लिए से लाभकारी है । शब्दवाणी दर्शन में स्नान को सब दानोँ से श्रेष्ठ 
अति बल दानो सब स्नानो - शब्द 57
बताया गया है । कैवल्य शब्द(कूंची वाला शब्द) में स्वर्ग के राह की विशिष्ट  क्रियाओं में स्नान को भी महत्वपूर्ण बताया गया है । गुरु जाम्भोजी के 29 नियम के अनुसरणकर्ता को "सहज स्नानी" कहकर संबोधित किया अर्थात् परिपूर्ण शुद्ध मनुष्य जो जल से देह, श्री हरि के जाप से मन मस्तिष्क और आत्मचिंतन (चिंता से चिंतन भला) से बुद्धि शुद्ध करता हो । 

अमावस्या को व्रत रखना (बिश्नोई पंथ का मासिक अवकाश दिवस) यह सिद्धांत मानव और पर्यावरण स्वास्थ वृद्धि की दृष्टि से बेजोड़ है । चंद्रमा हमारी जीवन दायनी शक्ति है और अमावस्या के दिन वो जीवन दायिनी शक्ति हमें प्राप्त नहीं होती है । यदि निस्तेज अन्न को खाएँगे उससे हम रोगी हो सकते है इसलिए व्रत करे । चिकित्सा विज्ञान भी इस उपवास की अवधारणा का समर्थन करता है । 

मानव तज्य तामसिक पदार्थों(अमल तमाकू भांग मांस मद्य से दूरी भली ) का निषेध पंथ संहिता के महत्वपूर्ण अव्यव है ।
घण तण जिम्या को गुण नाहीँ
कहकर गुरु जाम्भोजी ने भोजन के भाव अर्थात् अल्पाहार और शाकाहार को मनुष्य देह से नेह के रूप में परिभाषित किया । जम्भवाणी के परम संदेश में कर्मवाद पर बल दिया गया है । कर्मशीलता मनुष्य और देश के स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक है। 

निष्कर्षत हम कह सकते हैं गुरु जाम्भोजी द्वारा परिणीत पंथ (बिश्नोई समाज) की संहिता और जम्भवाणी  में मानव स्वास्थ की महत्ता का परिष्कृत रूप देखने को मिलता है जो एक मनुष्य के रूप में स्वयं, समाज और देश की स्वास्थ और समृद्धि में भागीदारी की दृष्टि से महत्वपूर्ण  है ।

जाने पर्यावरण हितैषी बिश्नोई समाज के बारे में


संदर्भ :
  1. शौच स्नान करो क्यूँ नाहीं, जिवड़ा काजै न्हाइये । शब्द -30 (जम्भवाणी)
  2. शील स्नाने संजमे चालो, पाणि देह पखाली, शब्द-86 (जम्भवाणी) 
  3. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी 2015-16 प्रकाशक: विवास पॅनोरमा प्रकाशन दिल्ली



Highlights:
  • गुरु जाम्भोजी और मानव स्वास्थ्य
  • गुरु जाम्भोजी की शिक्षा में मानव स्वास्थ्य
  • मानव और पर्यावरण स्वास्थ
  • गुरु जाम्भोजी के 29 नियम 
  • गुरु जाम्भोजी द्वारा विष्णोइ विचारधारा (Bishnoi Samaj) का प्रतिपादन
  • जम्भवाणी/शब्दवाणी

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