Bishnoi Community ki Sthapna : Guru Jambheshwar | बिश्नोई समाज की स्थापना

 Bishnoi Community ki Sthapna : Guru Jambheshwar | बिश्नोई समाज की स्थापना

बिश्नोई समाज की स्थापना | Bishnoi Community ki Sthapna


बिश्नोई समाज की स्थापना और तत्कालीन परिस्थितियां : राजस्थान का इतिहास गवाह है कि वि.स. 1542 में भीषण अकाल था। इस क्षैत्र के लोगों ने जैसे-तैसे आसोज का महिना लिया। पुशओं तथा मनुष्यों का जीना मुश्किल हो गया था। एक दिन भगवान जम्भेश्वर के चाचा पूल्होजी पंवार समराथल पर आये। जाम्भोजी ने पूल्होजी को 29 धर्म नियमों की आचार संहिता बताई । जीयां ने जुगति और मुंवा मुगति का आश्वासन दिया तो पूल्होजी ने स्वर्ग-नरक होने या नहीं होने की शंका प्रकट की । जाम्भोजी ने अपनी दिव्य दृष्टि पूल्होजी पंवार को प्रदान कर स्वर्ग-नरक दिखा दिये। पूल्होजी को विश्वास हो गया। वे जाम्भोजी के अनुयायी बन गये। अकाल के कारण लोगों के काफिले अनाज, चारे की खोज में अन्यत्र जाने लगे। जाम्भोजी ने घोषणा कर दी कि वे अकाल पीडि़तों की सहायता करेंगें। उन्हे अन्न-जल उपलब्ध करा देंगे। यह सुनकर हजारों लोगों के कई काफिले समराथल पंहुचने लगे। उनमें सभी लोगों ने शंकाएं प्रकट की। भगवान जम्भेश्वर ने उपस्थित जन समूह को समराथल धोरे के नीचे तालाब में अथाह पानी तथा उसके पास ही बहुत बड़ा अनाज का ढेर (स्टॉक) दिखाया। यह चमत्कार देखकर लोगों में पूर्ण विश्वास हो गया। इसी दौरान जाम्भोजी ने एक महान सम्मेलन की घोषणा की। उन्होनें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्णों के लोगों को समान अधिकार देने की बात कही। कार्यक्रम की घोषणा में कहा गया कि मनुष्य चाहे किसी भी वर्ण या जाति का हो 29 धर्म नियमों पर चलने का संकल्प लेकर जाम्भोजी के हाथों से दीक्षित होगा। वह बिश्नोई धर्म का सदस्य, अनुयायी तथा विष्णु भगवान का उपासक माना जायेगा। उसे बिश्नोई' (बीसऩौ) उपाधि से विभूषित कर दिया जायेगा। भविष्य में वह जीवन पर्यन्त पवित्र 29 धर्म नियमों का पालन करते हुए सुखमय जीवन यापन करेगा। उसकी पीढी दर पीढी बिश्नोई कहलायेगी और मृत्युपरान्त मोक्ष का अधिकारी होगा। 

जाम्भोजी की दिव्य शक्ति के कारण एकबार दर्शन करते ही लोगो में विश्वास हो जाता था। उनके चमत्कारों की प्रसिद्धि सर्वत्र फैल गई थी। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार वि.स. 1542 कार्तिक बदी अष्टमी के दिन समराथल धोरे पर स्वर्गनगरी का दृश्य उपस्थित हो गया ।

जुड़ी सभा समराथल पर जांसे इन्द्रपुरी सरमाती थी। 
गुप्त रूप धर सरस्वती, जम्भेश्वर के गुण गाती थी।

 

बिश्नोई समाज की स्थापना : गुरु जम्भेश्वर


बिश्नोई समाज की स्थापना : गुरु भगवान जम्भेश्वर ने स्वयं अपने हाथों से गायों का शुद्ध घी, खोपरा, कपूर, गुगल आदि अनेक सुगन्धित पादार्थों से विशाल यज्ञ का आयोजन किया । विधि विधान से हवन के पास ताजे जल का कलश भरकर रखा । उस जल को भगवान जम्भेश्वर ने मंत्रों के उच्चारण से अभिमंत्रित किया । उस यज्ञ पर तैतीस कोटि देवताओं का आव्हान किया सर्वप्रथम जाम्भोजी के चाचा पूल्होजी पंवार ने कलश पर हाथ रखा । जाम्भोजी द्वारा अभिमंत्रित जल जिसका नाम 'पाहल' रखा गया, पूल्होजी ने सर्वप्रथम पाहल लिया और उन्हे 'प्रथम बिश्नोई' की    उपाधि मिली । 

यह महासम्मेलन ( बिश्नोई धर्म स्थापना महोत्सव ) दीपावली तक निरन्तर चलता रहा । पाहल लेकर गुरु मंत्र लिया, 29 धर्म नियम याद किये उनको जीवनपर्यन्त निभाने का संकल्प लिया और बिश्नोई बनते गये। दीपावली तक चारों वर्णों के हजारों नरनारी दीक्षित हुए। 29 सूत्रों की आचार संहिता अपनाने के बाद जो लोग तात्कालिक परिस्थितियों में प्रवृत थे। उनसे बिश्नोई लोग अलग तरह का धार्मिक जीवन यापन करने लग गये और धीरे-धीरे यह धर्मसंघ बढता ही गया। भगवान जम्भेश्वर ने अपने निर्वाण दिवस तक बारह करोड़ लोगों को बिश्नोई बनाया । उसी क्रम में आज करोड़ो लोगों की जाम्भोजी में आस्था है । आज उनके बताये 29 धर्म नियमों पर चलने की बात पूरे विश्व के वैज्ञानिक, धर्मनेता व राजनेता सहर्ष स्वीकार करते हैं। 

वर्तमान में पर्यावरण की विश्वव्यापी ज्वलन्त समस्या का समाधान जाम्भोजी ने उस वक्त 29 नियम में सम्मिलित किया था । इससे स्पष्ट है कि वे कितने दिव्य दृष्टा थे । उनका अनुयायी बिश्नोई जहां भी जिस अवस्था में रहता है पर्यावरण संरक्षण में तत्पर है। वन्यजीव, वृक्षरक्षा तथा पर्यावरण शुद्धि के गुरुवचनों पर चलने के लिए प्राण न्योछावर करने को तत्पर है । जाम्भोजी का आज भी इतना जोरदार चमत्कार है कि प्रत्येक बिश्नोई धर्म, अर्थ काम और मोक्ष प्राप्ति में अग्रणी है। इस दोहे से भी स्पष्ट है -

                                                           
 या विधि धर्म सुनाय के किये कवल करतार,
  अन्न-धन, लक्ष्मी रूप गुण मुंवा मोक्ष दवार                 उन्नतीस धर्म की आंकड़ी  हिरदे  धारे जोय, 
जाम्भोजी किरपा करे, नाम बिश्नोई होय।                                  
                                                
                                                            



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