बिश्नोई समाज ने अपनी स्थापना के 539 साल पूरा किये है. और आज 540वां स्थापना दिवस मनाएगा. लेकिन स्थापना के 539 वर्ष बाद भी हम बिश्नोई होते हुए भी कहीं न कहीं मन व कर्म से बिश्नोई नहीं बन पाए. आज भी ढेर सारी रूढ़िवादी परंपराओं से हमारा समाज नहीं उबर पाया हैं. आज भी बिश्नोई शब्द को लेकर मन में प्रश्न उठता है कि . . . . क्या हम कर्म से सच्चे बिश्नोई बन पाए हैं?
जवाब हाँ भी है और ना भी, जो लोग हाँ कहते हैं उनका मत है कि . . . . हमारे धर्म स्थापना से आजतक ५३7 वर्षों में जाम्भाणी समाज विश्व का एक मात्र ऐसा धर्म है जो पर्यावरण रक्षण हेतु यज्ञ करने में अग्रणी है साथ ही इन 539 वर्षों में भगवान जांभोजी द्वारा प्रदत्त आचार-संहिता पर चलते हुए ४६९ से अधिक बिश्नोई सज्जनों और देवीयों ने पर्यावरण संरक्षण हेतु हरे वृक्ष व वन्यजीव और गौ रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति दी है. आज बिश्नोईज्म संस्कृति, सभ्यता और आदर्श वैश्विक जगत में छाए हैं जिसे देखकर आज प्रत्येक बिश्नोई अपने आप पर गर्व महसूस करता है. इन 539 वर्षों में समाज विकास के पथ पर अग्रसर हुआ, समाज का वर्चस्व क्षेत्र बढ़ा है. हम हर क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल कर रहें हैं. पर्यावरण व वन’जीव रक्षण, राजनीति, विज्ञान, खेल, तकनीकी, शिक्षा आदि में झंडे गाङे है.
सच्च कहुं तो हम कहने को तो बिश्नोई है, किन्तु कर्म से नहीं. आज बिश्नोई महज नाम के पीछे उपाधि बनकर रह गया है. कुछ वर्ष पूर्वतक संपूर्ण धर्म नियमों का पालन अच्छी तरह होता था किन्तु सदी के बदलते पड़ाव में आज कुछ शिथिलता नजर आ रही है. नियमों( नियम जो मनुष्य की आदर्श जीवन रूपी गति निर्बाध करतीं हैं) की महत्वपूर्ण कड़ी टूट जायेगी तो फिर यह श्रंखला कैसे जुड़ पाएगी.
आज कुछ हम हालात से मजबूर, कुछ अनैतिक मानसिकता तो कुछ पुरानी रूढ़िवादी प्रथाओं की जंजीरोँ में जकड़े हुए है. आज समाज के हालात पहले से बदतर है कुछ बिश्नोई लोगों के आचरण से लगता है ये बिश्नोई न होते तो ही अच्छा था. कम से कम जाम्भाणी धर्म नियमों की अवहेलना तो न होती. ऐसी विकृति से कभी न कभी आजादी तो मिलेगी, लेकिन हमें गर्त में जाने से कौन बचाएगा.?
बाल-विवाह, दहेज-प्रथा, अंतरजातीय विवाह, खुशी या गम पर अमल-डोडा की मनुहार, ऊँच-नीच, विकृत मानसिकता जैसी कुरूतियां जिनकी बेङियों में हम आज भी जकड़े हुए है..
हम बिश्नोई शब्द मात्र की पवित्रता से ही अपरिचित रहें है तो बिश्नोई होकर क्या कर्म कमाएंगे. हमने बिश्नोईज्म का मतलब ही बदल डाला, फिर चाहे वो हमारी बिगड़ी हुई, लापरवाह और लक्ष्य से भटकी हुई, अपने गलत करतुतोँ से मां-बाप का सर शर्म से झुकाने वाली पाश्चात्य अलापी युवा पीढ़ी हों या फिर चाहे समाज का नामी-गिरामी राजनीतिज्ञ हों, साधु-संत हों. सिर्फ नाम के पीछे बिश्नोई होने से बिश्नोई नहीं बन जाएंगे. आज समाज में व्याप्त बुराइयों से हम घिरे हुए हैं आखिर हम कब इन बुराइयों को छोड़ कर्म से बिश्नोई बनेंगे. पूरा समाज तस्करों, चोरों, बेइमानों के चंगुल में फंसा हुआ है. . . . कब छोङेंगे ये अनैतिक कर्म.?
ये ऐसे प्रश्न हैं जिनका जवाब शायद हमारे पास है भी या नहीं फिर भी हम पूर्णतय आश्वस्त है कि हम अब कर्म से बिश्नोई बनेंगे.
बिश्नोई होने का सही मतलब क्या है? ये हमें जानना होगा. कुछ दिनों के जश्न से कुछ नहीं होगा.
हमें मन व कर्म से बिश्नोई बनना होगा, जो इंसानियत, भाईचारा, प्रेम, एकता से भरा हो.
हमें भगवान जांभोजी द्वारा प्रदत धर्म नियमों (सच्चरित्र, स्वास्थ्यरक्षा, पवित्रता,श्रद्धा, विश्वास, वृक्षों व 'वन'जीवों की रक्षा, वाणी में सत्य, नम्रता, दयालुता का अनुसरण तथा सभी तामसिक पदार्थों का सर्वथा त्याग) को आचरण व कर्मों में उतारना होगा.
आप सभी साथियों एवं समस्त जांभाणी समाज को "धर्म स्थापना महोत्सव" की ढेरों बधाइयां और शुभकामनाएं.
आइए हम सब कर्म से बिश्नोई होने के संकल्प के साथ इस महोत्सव को मनाएं..
जय जाम्भाणी
- जय खीचड़
#Bishnoism