आइए जानें स्वामी रामानंद जी आचार्य (मुकाम पीठाधीश्वर) के बारे में | Bishnoism

 स्वामी रामानंद जी आचार्य (मुकाम पीठाधीश्वर) 

स्वामी रामानंद जी आचार्य (मुकाम पीठाधीश्वर)

स्वामी रामानंद जी आचार्य





बिश्नोई समाज की उत्पत्ति स्थल के निकट स्थित गुरु जाम्भोजी की स्माधि (मुक्तिधाम मुकाम) वाला मंदिर जो बिश्नोइयों का मूल केन्द्र हैं । पिठाधीश स्वामी रामानन्द जी आचार्य का जन्म हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार विक्रमी संवत 2006, ज्येष्ठ शुक्ल षष्ठी वार गुरुवार को गांव वोढा तहसील सांचौर जिला जालौर में किसान परिवार से सम्बन्ध रखने वाले श्री जेताराम के घर हुआ. तीन बहनों और दो भाईयों में सबसे बड़े पुत्र रामानन्द जन्म से ही पैरो से अपाहिज हैं. फिर भी उन्होंने इस शारीरिक कमी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। बालक रामानन्द का मन बचपन से ही गृह-कार्यों में नहीं लगा और मात्र चौदह वर्ष की आयु में घर-बार छोड़कर जाम्भोळाव धाम के महन्त श्री स्वामी रणछोड़ दास से साधु दिक्षा ली और अपनी प्रारम्भिक शिक्षा यहीं से प्राप्त की. 

दसवीं तक की पढ़ाई राजस्थान में ही प्राप्त की तथा उसके बाद आगे की पढ़ाई उत्तराखंड के गढ़वाल विश्वविद्यालय से प्राप्त की. यहाँ आपने हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर की. हरिद्वार से संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की तत्पश्चात आप मुक्तिधाम मुकाम आ गये तथा सामाजिक व धार्मिक कार्यों में लग गये.


मुक्तिधाम मुकाम में स्वामी रामानन्द जी आचार्य ने संस्कृत विद्यालय की स्थापना


निज मंदिर मुक्तिधाम मुकाम में स्वामी रामानन्द जी आचार्य ने 1 मार्च 1979 को में संस्कृत विद्यालय की स्थापना की तथा बच्चों को शिक्षा दीक्षा प्रदान करना प्रारम्भ किया. आपने अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के साथ मिलकर समाज के हित के लिये अनेक कार्य किये तथा वर्तमान में अनवरत प्रयत्नशील है. स्वामी रामानन्द जी ने गायों व बेसहारा पशुओं को आश्रय देने के लिये सन् 1988 में जगदगुरू जम्भेश्वर गौशाला, मुकाम में नींव रखी. जिसमें आज लगभग 2000 गाय, हिरण, नीलगाय, घोड़े, मोर आदि हैं. इस गौशाला को 1993 में अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के अधीन कर दिया गया है. आस-पास के क्षेत्र में घायल हिरण, नीलगाय, मोर तथा गाय आदि को इस गौशाला में रखा जाता है.

स्वामी रामानन्द आचार्य ने बिश्नोई समाज में फैली अनेक कुरीतियों के खिलाफ समय-समय पर आवाज उठाई तथा धर्म विमुख होते लोगों को सद्मार्ग दिखाया. समय-समय पर स्वामी जी देश के विभिन्न भागों में धर्मप्रचार तथा कथा-वाचन(जम्भवाणी) भी करते रहते हैं.


स्वामी रामानन्द आचार्य के सानिध्य में बिश्नोई समाज ने आयोजित किया पंचशती समारोह


सन् 2010 में बिश्नोई समुदाय की स्थापना के 525 वर्ष पूरे होने पर पंचशती समारोह का आयोजन भी स्वामी जी के सानिध्य में पूरा हुआ. जिसमें समाज के बुद्धिजीवी तथा गणमान्य लोगों ने भाग लिया तथा समाज में व्याप्त बुराईयों को दूर करने के लिए निर्णय लिये गये. जिसमें मुख्य रूप से शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ावा देने, मादक व नशीले पदार्थों का सेवन ना करने, दहेज प्रथा समाप्त करने, अन्तर्जातीय विवाह ना करने, बाल-विवाह प्रथा रोकने, मृत्यु-भोज पर प्रतिबंध लगाने तथा ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाना तथा उनकी रक्षा करने जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लिये गये. समाज के प्रत्येक व्यक्ति खासकर युवा वर्ग से अपील की गई कि वे समाज को आगे बढ़ाने में सहयोग करें तथा सामाजिक कुरीतियों से अपने आप को दूर ही रखें.


पंचशती समारोह में अखील भारतीय महासभा ने स्वामी रामानन्द आचार्य को मुकाम पीठाधीश की उपाधि से नवाजा.


 पंचशती समारोह में स्वामी रामानन्द जी महाराज की योग्यता व समाज के प्रति निष्ठा व किये गये कार्यों के उपहारस्वरूप अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा ने स्वामी जी को पीठाधीश की उपाधि से अलंकृत किया. स्वामी जी के आदेश की पालना प्रत्येक बिश्नोई अपना कर्तव्य समझता है. यही कारण है कि बिश्नोई समाज के गणमान्य, बुद्धिजीवी तथा राजनीतिक लोग से लेकर आम जन स्वामी जी के शिष्य हैं. स्वामी रामानन्द जी आचार्य की संरक्षकता में कई संगठन कार्य कर रहे हैं. स्वामी रामानन्द जी जैसे सन्तों के मार्गदर्शन के कारण ही बिश्नोई समाज आज भी अपनी पहचान पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र रखता है तथा वन्य - जीवों तथा हरे पेड़ों की रक्षा करना अपना कर्तव्य समझता है.

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