वन्य जीवों के मसीहा श्री विनोद कड़वासरा जिनके प्रयास से बड़ोपल व काजलहेड़ी के मध्य वन्यजीवों का रहवास आज सुरक्षित है।
वन्य जीवों के मसीहा श्री विनोद कड़वासरा जिनके प्रयास से बड़ोपल व काजलहेड़ी के मध्य वन्यजीवों का रहवास आज सुरक्षित है।
विनोद कड़वासरा का मानना है कि लहलहाते अर्द्ध शुष्क टिब्बे, वन्य जीवों हेतू पर्याप्त घास फूस, हिरणों के झुण्ड, कोयल की मधुर बोली, चिड़ियों की चहचहाहट और रात को लोमड़ी की आवाज, ये सब बीते समय की बातें हो जाएंगी आधुनिकता की दौड़ में और खेती की इस होड़ में वन और वन्य जीव खत्म होते जा रहे हैं। अगर ये हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जिस दिन हम डायनासोर की तरह हिरणों की मात्र बगावत फिल्म देखकर ही उनके अस्तित्व की कल्पना करेंगे। बढ़ रही जनसंख्या व आधुनिकता की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव जाति दिनोंदिन वन व वन्य जीवन को तहस-नहस कर रही है। क्या कभी सोचा है कि इन सबके बिना हमारा अस्तित्व संभव है? क्या दुनिया बनाने वाले ने कोई अनावश्यक जीवों की रचना कर दी है? क्या सिर्फ अकेले मानव जाति ही सृष्टि का जीवन चक्र चला पाएगी? इन सब प्रश्नों का उतर ना ही होगा क्योंकि सृष्टि के रचयिता ने हर जीव की भूमिका निर्धारित करके ही भेजी है और दीर्घकाल प्राकृतिक संतुलन के लिए सभी जीवों का एक निश्चित अनुपात में होना आवश्यक है। प्रकृति से छेड़छाड़ करना अन्ततः दुखदायी होता है।
बढ़ रही जनसंख्या की आवश्यकता की पूर्ति के लिए कृषि क्षेत्र बढ़ा है, वन क्षेत्र घटा है जिससे वन्य जीव सिर्फ कुछ ही सुरक्षित इलाकों में रह गए हैं। अधिकतर वन्य जीव बचे-खुचे सुरक्षित इलाकों में ही शरण लिए हुए अपने अनिश्चित भविष्य का आभास करके डरे हुए हैं। कहीं शिकारियों का डर, कहीं कुत्तों का डर, कहीं खेतों में ब्लेड की बाड़ और किसानों की हाहाकार । प्रतीत होता है कि सब जीवों का ही दोष है और बाकी सब निर्दोष हैं। फिर भी आज के इस युग में अपना इलाका ही बचा है जहाँ हिरणों व नील गायों के झुण्ड सुरक्षित विचरण कर रहे हैं। जैसे ही हिरणों व नील गायों के झुण्ड दिखाई देते हैं, अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये गांव बिश्नोई बाहुल्य हैं। जिला फतेहाबाद के गांव नाडोल, धौलू से लेकर जिला हिसार के गांव चौधरीवाली, आदमपुर तक सभी गांवों में हिरणों व नील गायों के झुण्ड देखे जा सकते हैं।
एक वन्य जीव आवास फतेहाबाद शहर से लगभग 15 कि.मी. बड़ोपल व काजलहेड़ी गांव के बीच लहलहाते अर्द्ध शुष्क टिब्बे हिरणों, नील गायों व अन्य वन्य प्रजातियों के लिए स्वर्ग के समान हैं। इस क्षेत्र में वन्य जीवों हेतु पर्याप्त घास फूस और वन्य जीवों के अस्तित्व के लिए आवश्यक अन्य स्त्रोत जैसे कि पानी व जलवायु उपलब्ध है। किन्तु ये वन्य जीव जो कि इस क्षेत्र के बिश्नोई समाज व अन्य जीव प्रेमियों द्वारा वर्षों से संरक्षित हैं, एक अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे थे।
गांव गोरखपुर में परमाणु बिजली संयंत्र के लिए एक आवासीय कॉलोनी स्थापित करने के लिए बड़ोपल के पास 185 एकड़ जमीन का अधिग्रहण न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) द्वारा किया गया है जो कि उक्त वन्य जीव आवास के बिल्कुल बीचों बीच स्थित है। इसी क्षेत्र में इन दुर्लभ जीवों की संख्या सबसे अधिक हैं परन्तु जैसा कि सर्वविदित है कि सरकार अपनी इस महत्वाकांक्षी योजना को शीघ्र शुरू करने को लालायित थी और गांव गोरखपुर के किसानों ने दो साल से अधिक समय तक धरना देकर सरकार के जमीन अधिग्रहण का विरोध किया लेकिन अन्ततः उन्होंने जमीन की कीमत ले ली और शांत हो गए। गांव बड़ोपल व गोरखपुर किसानों ने अपनी अधिगृहित भूमि, ट्यूबवैल, घर, ढाणी, हैंडपंप और यहां तक कि पेड़ पौधे इत्यादि सभी आर्थिक रूप से लाभकारी संसाधनों का ब्यौरा देकर सरकार से लाभ प्राप्त कर लिया।
फोटो: श्री विनोद कड़वासरा |
एनपीसीआईएल द्वारा प्लांट की पर्यावरण मंजूरी हेतू तुरंत रिपोर्ट (ईआईए रिपोर्ट पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट) तैयार की गई जिसमें एक कि.मी. से लेकर 10-30 कि.मी. के दायरे में रहने वाली मानव जाति की संख्या, विभिन्न प्रकार की बिमारियां व उनसे ग्रस्त मनुष्यों के आंकड़े, शिक्षा व स्वास्थ्य से संबंधित पूरे आंकड़े, वन्य जीवों की व पौधों की सूची, दायरे में आने वाले रोड़, प्रोजेक्ट और यहां तक कि साल भर में हर सेंकड में हवा व तापमान परिवर्तन का ब्यौरा दिया गया। लेकिन बड़े ही खेद का विषय है कि एनपीसीआईएल ने अपनी रिपोर्ट में शैड्यूल 1 के अन्तर्गत आने वाले जीवों (काले हिरण, चिंकारा व मोर) की भी कोई संख्या गिनने व लिखने की जहमत नहीं उठाई। क्योंकि वन और पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार के नियमों अनुसार पर्यावरण मंजूरी हेतु ईआईए रिपोर्ट में 10 कि.मी. के दायरे में आने वाले सैंच्यूरी, पार्क या संरक्षण क्षेत्र का व्यौरा देना होता है। अगर ऐसा कोई क्षेत्र दायरे में आता हो तो उसकी सूची प्रमुख वन्य जीव वार्डन से सत्यापित करवाकर देनी होती है। फिर नेशनल बोर्ड फॉर वाईल्ड लाईफ को स्टेंडिंग कमेटी से अनुमति लेकर वन्य जीवों हेतु नियमानुसार व्यवस्था करके आगामी कार्यवाही की जाती है। एनपीसीआईएल ने अपनी रिपोर्ट में यहां सैंच्यूरी, पार्क या संरक्षण क्षेत्र ना होने व वन्य जीवों के संरक्षण प्रत्याशा की आवश्यकता ना करने की बात लिखकर इतिश्री कर ली। अगर रिपोर्ट में शैड्यूल 1 के अन्तर्गत आने वाले जीवों (काले हिरण, चिंकारा व मोर) की संख्या स्पष्ट की जाती तो आंकड़े मंत्रालय के लिए चौंकाने वाले होते क्योंकि पूरे हरियाणा में स्थित लगभग 10 सैंच्यूरी, पार्क या संरक्षण क्षेत्रों में इतनी संख्या में काले हिरण, चिंकारा व मोर नहीं हैं। सैंच्यूरी, पार्क या संरक्षण क्षेत्र घोषित ना करना सरकार या वन्य जीव विभाग की लापरवाही रही है, ना कि इन जीवों का कोई कसूर। अगर एनपीसीआईएल इन जीवों की संख्या को शामिल करता तो यह संभव था कि प्रोजेक्ट प्रभावित होता। सभी प्रकार के वन्य जीव, वन्य जीव विभाग की सम्पदा है और वन्य जीव विभाग को इनका ब्यौरा व संरक्षण हेतु योजना एनपीसीआईएल को लिखित दिया जाना चाहिए था। परन्तु वन्य जीव विभाग द्वारा संयंत्र के कारण प्रभावित होने वाली अपनी सम्पदा के संरक्षण हेतु ब्यौरा दिया जाना चाहिए था।
उक्त सब घटनाक्रम के दौरान विनोद कड़वासरा, जोकि काफी समय से वन्य जीवों की हो रही मौतों से चिंतित थे और इस समस्या के चिर स्थाई समाधान के लिए प्रयासरत थे. इस वन्य जीव भूमि के अधिग्रहण के खिलाफ आवाज उठाई। विनोद कड़वासरा ने बताया कि मैं अध्यापन के लिए बड़ोपल, कुम्हारिया रोड ढाणी से प्रतिदिन काजलहेडी स्कूल तक सफर के दौरान इन जीवों को निहारता था और अपने क्षेत्र में ही बचे कुदरत की अनमोल विरासत के लम्बे अस्तित्व के बारे में चिन्तित होता था। मेरी ये चिन्ता और बढ़ गई जब पता चला कि नजदीक के गांव गोरखपुर में परमाणु बिजली संयंत्र के लिए एक आवासीय कॉलोनी स्थापित करने के लिए बड़ोपल के पास 185 एकड़ जमीन का अधिग्रहण न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) द्वारा किया गया है जो कि यहां के किसानों ने अपनी जमीन को खाली छोड़कर बनाया हुआ है, उजड़ने के कगार पर पहुंच गया।
क्षेत्र में दिनों-दिन हो रही हिरणों की मौत से चिन्तित मैंने पहले भी 26 जनवरी 2009 को कुत्तों की समस्या से निजात दिलाने व सेंचुरी बनवारे बारे श्रीमती मेनका गांधी जी को लिखा। मेनका जी ने संगठन बनाकर कुत्तों का बधियाकरण ही उपाय बताया इसके बाद मैंने वन्य जीव संरक्षण हेतु अपने स्तर पर प्रयास किए और सैंन्चुरी बाबत आवश्यक नियमों व संसाधनों के आंकड़े व तथ्य जुटाए। इस दौरान पता चला कि संरक्षित क्षेत्र हेतु 1991 के बाद कानूनन सरकारी भूमि होना आवश्यक है क्योंकि संरक्षित क्षेत्र में बहुत सी पाबंदियां होती हैं जोकि प्राइवेट जमीन पर नहीं थोपी जा सकती। अतः अधिग्रहित भूमि पूर्णतया सरकारी होने तक चुप्पी साध ली। आवासीय कॉलोनी स्थापित करने के लिए बड़ोपल के पास 185 एकड़ भूमि जीव रक्षा बिश्नोई सभा के प्रदेशाध्यक्ष जोकि गांव बड़ोपल के ही निवासी है से अनुरोध किया कि इसके विरूद्ध आवाज उठाएं। ये जगह अधिग्रहित करना वन्य जीव संरक्षण के अनुसार गलत है, जिसके बारे में जनसुनवाई के दौरान आवाज उठाएं ताकि सैंकड़ो जीव बचाए जा सकें। आवाज उठाने का सबसे सुनहरा अवरार जनसुनवाई जोकि 17 जुलाई 2012 थी जिसमें प्रदेशाध्यक्ष महोदय किसी कारणवश समय पर नहीं पहुंचे तो हम यह अवसर चूक गए।
बिश्नोई समाज एक-एक हिरण के लिए जान देने को तैयार रहता है और इन घटनाओं को रोकने में समाज कुछ भी नहीं कर पा रहा था और क्योंकि जीव रक्षकों की लाख कोशिशों के बावजूद इस प्रकार से घायल नाजुक वन्य जीव को संभव नहीं होता इन्हीं प्रयासों के तहत विनोद ने वन्य जीवों को बचाने हेतु प्रसिद्ध जीव प्रेमी व पर्यावरणविद श्रीमती मेनका गांधी जी से दोबारा दिसम्बर 2012 में सम्पर्क किया व कुत्तों के कारण वन्य जीवों को नुकसाने बारे में बताया इसी बीच इनकी मुलाकात जीवों की रक्षा के लिए काम करने वाले समाज के कर्मठ व्यक्तित्वों श्री इन्द्रराज ज्याणी, जीव रक्षा जिला प्रधान श्री राधेश्याम धारनिया, उपप्रधान मा. मदन लाल, सतबीर सहारण दादुपुर, सत्यरावल भादू, राधेश्याम नागपुर. रमेश राहड़ चिंदड से हुई जिनके कदम दर कदम सहयोग से ही ये इन जीवों की आवाज बुलंद करने में सक्षम हुए। दिसम्बर में ही मेनका जी ने एक सात सदस्यी टीम गठित करके सर्वे हेतु यहाँ भेजी व टीम के सदस्यों को अधिग्रहित भूमि का भ्रमण करवाया। टीम ने कुत्तों हेतु बधियाकरण अभियान बारे सर्वे किया व साथ ही टीम के
सदस्यों ने उक्त अधिग्रहण को गलत बताया। इस दौरान संयंत्र की कालोनी से प्रभावित होने वाले जीवों को बचाने हेतु मैंने अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई सभा के बैनर तले दिसम्बर 2012 में रैली निकाली व बड़ोपल में बाबा रामदेव मेले में जागरूकता शिविर आयोजित किया गया फरवरी 2013 में ही साथियों के साथ मिलकर इलाके के गांवों में जाकर वन्य जीव की विभिन्न प्रजातियों की मौजूदगी बारे सर्वे किया ताकि आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय में प्रमाण दिया जा सके।
15 जनवरी 2013 को मेनका जी से विनोद कड़वासरा इन्द्रराज ज्याणी सहित मिले। इन्होंने मेनका जी से वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास को अधिग्रहित किए जाने बारे बताया तो उन्होंने कानूनी लड़ाई लड़ने बारे मार्गदर्शन किया। मार्च के अन्त में मेनका जी ने बधियाकरण हेतु डाक्टर व कैचर की टीम भेजी व वन्य जीव क्षेत्र के कुत्तों हेतु बधियाकरण अभियान चलाया ताकि कुत्तों की आबादी नियंत्रण के साथ-साथ उनकी हिंसक प्रवृत्ति कम की जा सके। श्री विनोद कड़वासरा ने बताया कि मैंने एनपीसीआईएल द्वारा पर्यावरण मंजूरी हेतु 440 पेजों की रिपोर्ट (ड्राफ्ट ईआईए रिपोर्ट पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट) का अध्ययन किया जिसमें वन्य जीवों के संरक्षण हेतु कोई योजना नहीं थी। तत्पश्चात् 18 नवम्बर 2012 को पर्यावरण और वन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा पर्यावरण मंजूरी हेतू गठित विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी एक्सर्प एप्पल कमेटी) ने शैड्यूल-1 के वन्य जीवों बाबत जानकारी मांगी कि प्रोजेक्ट स्थल व अध्ययन क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले वन्य जीव/पशुवर्ग शैड्यूल-1 की प्रजातियों के पुनर्वास तथा संरक्षण हेतु उपयुक्त बजट प्रावधान व प्रोजेक्ट संबंधी गतिविधियों के कारण उन्हें अनुचित कठिनाई संबंधित और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के बारे में ब्यौरा दें। फरवरी 2013 में एनपीसीआईएल द्वारा 1170 पेजों की फाइनल ईआईए रिपोर्ट पर्यावरण मंजूरी हेतु भेजी गई। जिसमें लिखा गया कि प्रोजेक्ट स्थल व अध्ययन के क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले वन्य जीव/ पशुवर्ग शैड्यूल-1 की प्रजातियों के पुनर्वास तथा संरक्षण हेतु गांव बड़ोपल की पंचायत से 40-50 एकड़ जमीन लेकर हिरण पार्क बनाकर सभी शैड्यूल-1 वन्य जीवों जैसे कि काला हिरण व चिंकारा की प्रजातियों को संरक्षित किया जाएगा।
हमने उक्त पर असंतोष व्यक्त करते हुए 26 फरवरी 2013 को उपायुक्त फतेहाबाद को ज्ञापन सौंपा, जिसमें लिखा गया कि प्रोजेक्ट हेतु पर्यावरण मंजूरी भी अभी लम्बित है. फिर भी जिला प्रशासन/एनपीसीआईएल द्वारा तारबंदी/बाड़बंदी करके इन दुर्लभ प्रजाति के जीवों के प्राकृतिक आवास में खलल पैदा करते हुए जीवों को उनके वर्षों के मूल व सुरक्षित पनाहगाह से खदेड़ा जा रहा है, जिससे वे असुरक्षित स्थानों में शरण लेकर अपना अस्तित्व दांव पर लगाने को मजबूर हैं। इन जीवों को खदेड़ा जा रहा है. ताकि रिहायशी क्षेत्र व संयंत्र के निर्माण में दुर्लभ वन्य जीवों की मौजूदगी के कारण कोई बाधा ना आए व पर्यावरण मंजूरी मिल सके गांव बड़ोपल की पंचायत से 40-50 एकड़ जमीन लेकर हिरण पार्क बनाने संबंधी बात के विषय में लिखा गया कि, ये सब आसमानी बातें जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं क्योंकि -
1 पंचायत की जमीन अलग अलग जगहों पर टुकड़ों में हैं यानि एक जगह 40-50 एकड़ नहीं हैं।
2. प्रोजेक्ट स्थल व अध्ययन के क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले काला हिरण व चिंकारा सैंकड़ों में हैं। अतः वन्य जीव संरक्षण के नियमानुसार इन हेतु 300 एकड़ से भी ज्यादा भूमि की आवश्यकता होगी।
3. क्षेत्र के लोग व बिश्नोई समाज के साथ-साथ ग्राम पंचायतें भी ये समझ नहीं पा रहे हैं कि सैंकड़ों काले हिरणों व चिंकारा को कैसे 40-50 एकड़ में प्रतिस्थापित किया जा सकता है? इनके प्रतिस्थापन हेतु अनुचित कठिनाई के बिना क्या प्रक्रिया अपनाई जाएगी? उक्त कारणों को देखते हुए पंचायत भी जमीन देने की कम ही इच्छा रखती थी, क्योंकि संरक्षण के नाम पर यह महज़ एक औपचारिकता ही थी ताकि पर्यावरण मंजूरी मिल सके।
साथ ही पत्र में दुर्लभ प्रजाति के जीवों के संरक्षण हेतु मांग की गई कि सरकार जीवों के प्राकृतिक आवास के साथ छेड़छाड़ ना करके रिहायशी क्षेत्र हेतु भूमि अधिग्रहण इस क्षेत्र से थोड़ा सा हटाकर नीचे की ओर करने तथा इस अधिग्रहित भूमि के अलावा संरक्षित क्षेत्र हेतु नियमानुसार भूमि भी इसके साथ की ही खरीद कर राज्य सरकार या एनपीसीआईएल इसका स्वामीत्व सैंचुरी हेतु वन व वन्य जीव विभाग को सौंपने बारे लिखा गया ताकि इन शैड्यूल-1 वन्य जीवों जैसे कि काला हिरण व चिंकारा के साथ-साथ अन्य सभी वन्य जीवों को इनके प्राकृतिक आवास पर ही बसाया जा सके और इनके प्रतिस्थान हेतु अनुचित्त कठिनाई से भी बचा जा सके। ये भी लिखा गया कि क्षेत्र के किसान और भी भूमि इनके संरक्षण/संरक्षित क्षेत्र हेतु सरकार या एनपीसीआईएल को बेचने को तैयार हैं और आप वन्य जीव प्रेमियों व बिश्नोई समाज की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए इन जीवों हेतु आवश्यकतानुसार 500-700 एकड़ में बहन अमृता देवी के नाम संरक्षित क्षेत्र (सैन्चुरी) घोषित करवा कर ही बाड़बंदी/तारबंदी इत्यादि की आगामी कार्यवाही करवायेंगे। पत्र में क्षेत्र में वन्य जीव कानून 1972 के अनुसार शैड्यूल 1 से 5 की दुर्लभ प्रजातियों का ब्यौरा भी दिया गया जोकि इतनी संख्या में पूरे भारत वर्ष में कहीं भी नहीं मिल सकती तथा इस पत्र की प्रति माननीय जयराम रमेश, वन एवं पर्यावरण मंत्री, भारत सरकार: निदेशक उत्तर क्षेत्रीय कार्यालय चण्डीगढ़ (वन एवं पर्यावरण मंत्रालय) भारत सरकार, वन्य जीव संभाग - वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, दिल्ली - भारत सरकार, पशु कल्याण संभाग - वन एवं पर्यावरण मंत्रालय- दिल्ली - भारत सरकार, अपर निदेशक - वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो नई दिल्ली: निदेशक - उत्तर क्षेत्र वन्य जीव संरक्षण – नई दिल्ली: निदेशक राष्ट्रीय पशु कल्याण संस्थान, बल्लभगढ़, हरियाणा; निदेशक पशु कल्याण बोर्ड भारत, चेन्नई, भारत वन्य जीव संस्थान, देहरादून, वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया, नोएडा; सैन्टर फॉर एनिमल एंड एनवायरमेंट, बंगलौर; कैप्टन अजय सिंह यादव, वन एवं पर्यावरण मंत्री, हरियाणा सरकार तथा मुख्य वन्य जीव संरक्षक,
हरियाणा को भी भेजी गई। मार्च माह में मेनका गांधी जी द्वारा डॉक्टरों व कुशल कैचरों (पांच डॉक्टर व पांच कैचर्स) की टीम भेजी गई व मैंने, इन्द्रराज ज्याणी, जीव रक्षा जिला प्रधान श्री राधेश्याम धारनियां उपप्रधान मा, मदन लाल, सत्य रावल भादू के साथ मिलकर बन्य जीव बाहुल्य क्षेत्र से लगभग 600 कुत्ते पकड़ा व बधियाकरण करवाया।
न्यायालय की शरण में जाने बारे आवश्यक सम्पूर्ण दस्तावेज जुटाने शुरू किए जो कि हमारे द्वारा अप्रैल 2012 तक पूर्ण कर लिए गए। आवश्यक दस्तावेजों हेतु सूचना के अधिकार के तहत सूचनायें मांगी गई व पॉवर प्लांट की 1170 पेजों की पूरी रिपोर्ट का अध्ययन किया गया ताकि कोर्ट के सामने सारे तथ्य प्रस्तुत किए जा सकें। केस बारे आवश्यक मार्गदर्शक पीपल फॉर एनिमल (बीएफ) की चेयरपर्सन श्रीमती मेनका गांधी जी व अमित चौधरी जी (पीएफए) रहे और महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इस क्षेत्र के दुर्लभ वन्य जीव बिश्नोई समाज द्वारा संरक्षित हैं इसलिए हमने अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई सभा के बैनर तले कोर्ट में याचिका दायर करने की सोची, जिस हेतु संस्था का प्रस्ताव जिसमें याचिका हेतु अधिकृत योग्य व्यक्तियों की सूची हो, मांगी गई। अन्ततः हम मई माह के अन्तिम दिन दिल्ली में वकील से मिले। जुलाई में ग्रीष्मकालीन अवकाश होने के कारण याचिका दायर नहीं हो सकी व वकील द्वारा मांगे गए और तथ्य जुटाए गए।
न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन इंडिया लिमिटेड ने भी अधिग्रहित भूमि को इन जानवरों से मुक्त रखने के लिए भूमि के चारों तरफ लोहे की जाली लगाना शुरू कर दी तथा इन जीवों के प्राकृतिक आवास के बिल्कुल बीचों बीच मशीनें आदि लगाकर इन्हें खदेड़ना शुरू कर दिया। परिधि की बाड़ लगाना लुप्तप्राय प्रजातियों कृष्णमृग, हिरणों नील गायों व अन्य जीवों के लिए एक बड़ा खतरा साबित हुई। दस दिन में सात कृष्णमृग जालीनुमा बाड़ के घेरे के कारण आवारा कुत्तों का शिकार हो गए। काले हिरणों की मौत ने समाज में रोष पैदा कर दिया, जिससे समाज, विशेषकर युवा वर्ग ने दिनांक 07.07.2013 को विरोध प्रदर्शन किया और मौके पर पहुचे मण्डलीय वन्य जीव अधिकारी व सब डिविजनल मजिस्ट्रेट के समक्ष कड़ी आपत्ति दर्ज करवाई। तत्पश्चात सरपंच प्रतिनिधि श्री जोगिन्द्र पूनियां के नेतृत्व में समाज का प्रतिनिधि मंडल उपायुक्त के पास पहुंचा। उपायुक्त महोदय ने तुरंत कुत्ते पकड़ने हेतु टीम गठित करके बाड़बंदी हटाने हेतु अगले दिन ही अधिकारिक बैठक बुलाने का आश्वासन दिया।
गुरु महाराज की ऐसी कृपा रही कि उक्त विरोध के कारण कम्पनी को अपनी जालीनुमा बाड़ 14.07.2013 तक समेटनी पड़ी व अगले ही दिन 15.07.2013 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की प्रिंसिपल बैंच ने पहली सुनवाई के दौरान ही रोक का आदेश दिया। उल्लेखनीय है कि दिनांक 09. 07.2013 को याचिका हेतु प्रार्थना पत्र दिया गया 15.07.2013 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की प्रिंसिपल बैंच ने पहली सुनवाई के दौरान ही प्रस्तावित आवासीय कालोनी स्थल के चारों ओर जालीनुमा बाड़ लगाने पर रोक का आदेश दिया व सभी पांच प्रतिवादियों (वन्य जीव संभाग-वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, दिल्ली, भारत सरकार; हरियाणा सरकार, उपायुक्त फतेहाबाद; भारतीय वन्य जीव संस्थान, देहरादून, अतिरिक्त मुख्य वन संरक्षक, उत्तर क्षेत्रीय कार्यालय चण्डीगढ़ (वन एवं पर्यावरण मंत्रालय) भारत सरकार; मुख्य वन्य जीव संरक्षक, हरियाणा; न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, दिल्ली व मुम्बई के कार्यालय को नोटिस जारी किया गया वन्य जीव कानून 1972 व
भारतीय वन्य जीव संस्थान के नियमानुसार इन जीवों को कहीं भी अन्यत्र स्थानांत्रित नहीं किया जा सकता। हमारे द्वारा माननीय नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष उक्त सभी तथ्यों के साथ अनुरोध किया गया है कि किसी स्वतंत्र नियमानुसार जमीन अधिग्रहण करके वन्य जीवों के संरक्षण हेतु कोई सैन्चुरी या नेशनल पार्क घोषित करके ही प्लांट सम्बन्धी आगामी कार्यवाही करें। दिनांक 22. 07.2013 को पहली व 30.07.2013 को दूसरी सुनवाई के दौरान सभी पांचों प्रतिवादी कोई जवाब नहीं दे पाए। दिनांक 22.08.2013 को तीसरी सुनवाई के दौरान ट्रिब्यूनल के समक्ष भारतीय वन्य जीव संस्थान - देहरादून की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई और माननीय ट्रिब्यूनल ने संयंत्र की कॉलोनी स्थल पर स्टे बरकरार रखते हुए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय भारत सरकार को निर्देश दिए कि यदि याचिकाकर्ता इच्छुक हो तो पर्यावरण मंजूरी देने से पहले एक्सपर्ट अप्रेज़ल कमेटी याचिकाकर्ता की शिकायतें सुनें और पर्यावरण मंजूरी देने या न देने से संबंधित आगामी कार्यवाही में याचिकाकर्ता को एक सप्ताह का नोटिस देकर बुलाएं।
विनोद कड़वासरा ने बताया कि मेरे द्वारा प्राप्त जनसूचना अधिकार से प्राप्त जानकारी अनुसार गत मात्र डेढ़ वर्षों में 188 काले हिरण अकेले फतेहाबाद व हिसार जिले में मौत का शिकार हो गए हैं और इस आंकड़े में तो केवल वे ही वन्य जीव शामिल हैं जिनका पोस्टर्माटम हुआ है। इसके अलावा लगभग इतने ही वन्य जीव ऐसे मिलेंगे जो विभाग के रिकार्ड में दर्ज नहीं है और मारे जाने पर किसानों द्वारा मौके पर ही दफनाए दिए जाते हैं। उपरोक्त के अलावा यहां पर दर्जनों दुर्लभ प्रजाति के पक्षी पाए जाते हैं। परन्तु आज तक वन्य जीव विभाग द्वारा इन जीवों के संरक्षण हेतु कोई योजना नहीं बनाई गई, ना ही सर्वे करवाया गया और ना ही गणना के प्रयास किए गए। क्योंकि बिना आंकड़ों के इनके संरक्षण हेतु कोई योजना नहीं बनाई जा सकती। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा 15 फरवरी 2013 तक सभी राज्य सरकारों से सैंन्चुरी इत्यादि का प्रस्ताव मांगा गया था जोकि स्थानीय वन्य जीव विभाग द्वारा नहीं भेजा गया। लेकिन सबसे बड़ा दुःख का विषय है कि इतनी अधिक संख्या में दुर्लभ वन्य जीवों की मौत के बावजूद ना तो वन्य जीव विभाग के पास पर्याप्त कर्मचारी है और ना ही कोई दुर्घटनाग्रस्त जीवों हेतु एम्बुलैंस व पुनर्वास केन्द्र इत्यादि की सुविधा है। वन्य जीवों के संरक्षण हेतु कोई सैंन्चुरी या नेशनल पार्क घोषित ना करना सरकार की लापरवाही है।
न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन इंडिया लिमिटेड द्वारा अधिग्रहित भूमि के चारों तरफ लोह जाल लगाने से दस दिन में सात कृष्णमृग जालीनुमा बाड़ के घेरे के कारण मारे गए। समाज व वन्य जीव प्रेमियों द्वारा 07.07.2013 तक बाड़बंदी के कारण मरे चार हिरणों की मौत के जिम्मेवार एनपीसीआईएल अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही हेतु जिला वन्य जीव निरीक्षक को लगभग 80 व्यक्तियों के हस्ताक्षरयुक्त कानूनी कार्यवाही हेतु शिकायत सौंपी जिस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। तत्पश्चात् 13.07.2013 को मण्डलीय वन्य जीव अधिकारी को 6 हिरणों की व 16.07.2013 को उपायुक्त फतेहाबाद सात हिरणों की मौत हेतु कानूनी कार्यवाही की शिकायत सौंपी गई। उक्त पत्रों की प्रतियां मुख्यमंत्री को भेजी गई, परन्तु कोई कार्यवाही नहीं की गई। जनसूचना अधिकार कानून के तहत 20.08.2013 को मण्डलीय वन्य जीव अधिकारी द्वारा उक्त शिकायत पर की गई कार्यवाही की ब्यौरा मांगा गया जिसके प्रतिउत्तर में लिखा गया कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार के पत्रानुसार एनपीसीआईएल अधिग्रहित भूमि को कब्जा मुक्त रखने के लिए बाड़बंदी की जा सकती है इसलिए कोई कार्यवाही नहीं बनती। लेकिन मेरा ये मानना है कि मंत्रालय का पत्र किसी भी तरह से एनपीसीआईएल को काले हिरणों को मारने हेतु अधिकृत नहीं करता और इनके बार-बार लिखित ज्ञापन (मंजूरी से पहले बाड़बंदी ना करने बारे) देने के बावजूद एनपीसीआईएल ने काले हिरणों को मौत के मुंह में धकेला जो कि सरासर जानबूझ कर किया गया था और भारतीय संविधान की उल्लंघना के गलत होने के कारण ही बाड़ हटानी पड़ी लेकिन तब तक बहुत देरी हो चुकी थी। अतः वन्य जीवों को न्याय दिलाने के लिए हमें न्यायालय की शरण लेनी पड़ी।
दिनांक 5.7.2013 के बाद 7.7.2013 तक चार काले हिरणों को मारने वाले दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही हेतु अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई सभा के तत्वाधान में बड़ोपल में कुम्हारिया रोड़ पर दिनांक 08.07.2013 से धरना शुरू कर दिया गया ताकि सात हिरणों को मारने के दोषियों को सजा दिलाई जा सके और कुत्तों के लिए बधियाकरण हेतु अभियान दोबारा शुरू करवाया जा सके। धरने के कारण इलाके के जीव प्रेमी एकजुट होना शुरू हो गए। लोगों को धरने में सहभागिता उल्लेखनीय थी, लेकिन धरना प्रशासक की नाक के नीचे ना होने की वजह से कोई दबाव नहीं बन पाया और अन्ततः हमने समाज को इस बारे में जागरूक करने व अधिक से अधिक संख्या में लोगों को साथ जोड़कर उक्त मांगों बारे प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान रूपी सत्याग्रह का रास्ता अपनाया। इस दौरान वन्य जीव संरक्षण जारूकता सप्ताह आयोजित किया गया और सभी जनों को वन्य जीवों के संरक्षण उपायों के बारे में बताया गया तथा तारबंदी के कारण मारे गये हिरणों के लिए उपायुक्त फतेहाबाद, एस०डी०एम०, एन०पी०सी०आई०एल० के प्रोजेक्ट अधिकारी, चीफ इंजीनियर, वन्य-जीव विभाग के मुख्य संरक्षक, सर्कल अधिकारी तथा बाड़बन्दी करने वाले ठेकेदार के खिलाफ कार्यवाही की मांग करते हुए कुरूक्षेत्र की पर्यावरण अदालत में केस दायर किया गया। उपरोक्त लोगों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही कुरुक्षेत्र की पर्यावरण अदालत में विचाराधीन है ।
इसके बाद 19 नवम्बर, 2013 को पर्यावरण मंत्रालय की बैठक में श्री विनोद कड़वासरा, धर्मबीर पूनिया और अमित चौधरी शामिल हुए तथा बिश्नोई सभा का प्रतिनिधित्व करते हुये वन्य-जीव संरक्षण की मांग की और उक्त रिपोर्ट लागू करने का लिखित अनुरोध किया प्रधानमंत्री से शिलान्यास की जल्दबाजी में पर्यावरण मंत्रालय ने विशेष श्तों के साथ 27 दिसम्बर, 2013 को मंजूरी दी जो कि नियमानुसार सही नहीं थी। एक तरफ सरकार मानवता की सारी हदें पार करती हुई संयन्त्र के लिये साम-दाम-दंड भेद लगा रही थी तो दूसरी ओर बिश्नोई समाज इसके विरूद्ध डटा रहा। जीव रक्षा सभा के जिला प्रधान सुनील बिश्नोई के नेतृत्व में प्रधानमंत्री के शिलान्यास समारोह के विरूद्ध तीन दिन तक धरना दिया गया पर्यावरण मंजूरी के खिलाफ दोबारा अपील मार्च, 2014 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में की गई, जिसकी पैरवी प्रसिद्ध पर्यावरणविद्ध वकील डॉ० एम०सी० मेहता ने की। जिसमें वन्य-जीव संरक्षण, जनसुरक्षा, सिंचाई तथा पीने के पानी की उपलब्धता व प्रदूषण जैसे महत्वपूर्ण बिन्दुओं के आधार पर परमाणु संत्रय की पर्यावरण मंजूरी रद् करने की अपील की गई। 20 जुलाई 2015 को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में पर्यावरण मन्त्रालय की ओर से दी गई दलीलों को रद्द करते हुए एन.जी.टी. ने इस जमीन पर आवासीय कालोनी ना बनाने का निर्णय दिया। जिसका पालन करते हुए एन.पी.सी.आई.एल. ने अब इस जगह पर कालोनी बनाने से इन्कार कर दिया है। एन.जी.टी. ने इस जगह को वन्य जीवों के लिये संरक्षित करने की सिफारिश पर्यावरण मंत्रालय से की है।
आपने जाना वन्यजीवों के मसीहा श्री विनोद कड़वासरा के बारे में, बिश्नोई समाज में श्री कड़वासरा की तरह अनेक पर्यावरण प्रेमी जी-जान से वन व वन्यजीवों के संरक्षण में महत्ती भूमिका निभा रहे हैं। बिश्नोई समाज के संस्थापक सद्गुरु जाम्भोजी के परम संदेश
की अनुपालना में वन व वन्य जीवों को बचाने के लिए समय-समय पर बहुतेरे बिश्नोइयों ने अपना शीर्ष बलिदान देकर मनोवृत्ति दर्शायी।" जीव दया पालणी, रूंख लीलो न घावे।"
मूल आलेख: शोधगंगा
फोटो: विनोद कड़वासरा
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