मानव और पशु प्रेम की यह उद्भुत लीला जाजीवाल बिश्नोइयान में गांव से एक किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में एक बहुत बड़ा धोरा पर स्थित जम्भेश्वर भगवान के मंदिर में रह रोज साकार होता है। यहां हर रोज 120 शब्दों का यज्ञ(हवन) होता है और हर रोज गाँव के लोग यज्ञ में आहुति देने आते है।
यज्ञ की सुगंध से आसपास के हरिण यहां आकर प्रसाद के लिए एकटक खङे रहते है। और संत उन्हें प्रसाद स्वरूप मखाणे देते हैं। वे संत के हाथ का प्रसाद चट कर वापिस कुलांचे भरते हुए दौङ जाते है।
मतलब जो हिरण कभी यहाँ पालतू हुआ करते थे।हवन में ग्रामीण आखा(अनाज) आदि लेकरआते है जो आसपास के जंगल में स्वछंद विचरण करते हरिण, मोर आदि वन्य प्राणियों के भोजन का सहारा है।
समराथल की ही भाँति यहाँ 500 बिघा जमीन पर घना जंगल है। इस जंगल में विभिन्न प्रजातियों के हरिण है और इतने ही मोर है यही नहीं अन्य सभी प्रकार के वन्यजीव भी यहाँ बहुतायत है।
यहां के हरिण और मोर लोगों के साथ इस तरह घुल मिल गए हैं कि लोगों को देखते ही हरिण उनके पास आ जाते है। यहाँ हरसमय वन्य जीवों की चहल पहल से बड़ा ही मनोरम दृश्य रहता है।
जब भी लोग इस मंदिर पर आते है तो... इस मंदिर के आस पास चार पाँच किलोमीटर केक्षेत्र में फैले जंगल को देखकर उन्हें लगता है... वो शायद अफ्रीका की किसी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में आ गए है। यह बिश्नोई बाहुल्य वाला क्षेत्र है। जिससे वन्यजीवों को प्राकृतिक संरक्षण प्राप्त है।
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