मन की बात PM के साथ : जय खीचड़
मन की बात कार्यक्रम के सफल संचालन के तीन वर्ष पूर्ण होने पर भारतीय प्रधान 'माननीय नरेन्द्र मोदी साहेब' व संपुर्ण देश को हार्दीक बधाई! आशा है जन-जन के मन का भाव युं ही आपश्री के श्रीमुख से समस्त भारतवर्ष के प्रत्येक नागरिक तक पहुंचते रहेेंगे।
मैं प्रत्येक कार्यक्रम को नियमित रूप से सुनता आया हुं। आपके द्वारा देश हितेषी सुझावों के लिए बार-बार आमजन को मन के भाव रखने को आग्रह प्रत्येक नागरिक पर अनुग्रह ही है। मैं पिछले कुछ समय से अपनी बात रखने की सोच रहा था अंतत: आज रखने का प्रयास कर रहा हुं। वन संपदा के संरक्षण पर 'मन की बात' में दिया आपका व्यक्त्य सुना, अच्छा लगा जब खुले दिल से पहली बार भारतीय प्रधान वन व वन्य जीवों के संरक्षण को प्रत्येक भारतीय नागरिक को प्रेरित कर रहे हैं।
इस मुद्दे में मैं आपका ध्यान भारतवर्ष के उत्तर-पश्चिम में स्थित विषम भौगोलिक वातावरण वाले राज्य राजस्थान के उत्तर-पश्चिम (मरुस्थल) भाग में रहने वाले विशेष पर्यावरणीय हितेषी संप्रदाय ( विश्नोई ) की और दिलाना चाहुंगा। भौगोलिक विषमताओं का चरम ' भारतीय थार ' में वृक्ष व वन्य जीव जन्तुओं के संपोषण से युक्त विचारधारा का उदय मध्य सदी में महान पर्यावरणविद् संत श्री जाम्भोजी के परम संदेशों के द्वारा हुआ। जाम्भोजी ने पर्यावरणीय संदेश को अपने अनुयायियों के जीवन स्तर से जोड़ा ताकि पर्यावरण रक्षण व पोषण मनुष्य की मनोवृत्ति से जुड़ जाए।
इसी मनोवृत्ति का एक अद्भुत, अद्वितीय उदहारण सन् १७३०(संवत्१७८७) में दृष्टिपात हुआ जब तत्कालीन रियासत जोधपुर के खेजड़ली परगना में राजकीय महलों के निर्माण हेतु हरे वृक्षों को काटने के उद्देश्य से दीवान "गिरधर भण्डारी" पहुंचा, वहां के लोगों के अनुनय-विनय पर भी न माना तो लोगों ने अपने श्रद्धेय गुरु के संदेश 'जीव दया पालणी, रूंख लीलो नी घावे' का पालन करते हुए हिंसा के मध्य अहिंसा का मार्ग चुना। उपस्थित जन समुह में से प्रत्येक वृक्ष से लिपट कर खड़े हो गए। ऐसे में दीवान ने अपना अपमान समझ सैनिकों को वृक्ष के साथ लिपटे लोगों को काटने का आदेश दे दिया। विशाल सैना के सम्मुख वृक्ष हितेषी समुह को नैत्रि विरांगना " अमृतादेवी " का उद्यघोष
"सिर सांटे रूंख रहे तो भी सस्तो जाण"
वर्तमान में खेजड़ली उद्यान का राज्य के पर्यटन में अहम स्थान है। मानव जगत को प्रकृति संरक्षण का संदेश देता यह उद्यान आज राज्य व केन्द्र की उपेक्षा का शिकार है। पर्यटन में महत्वपूर्ण (मरू त्रिकोण) पर होते हुए भी इस स्थल तो पर्यटन की दृष्टि से न तो विकसित किया गया है और न ही कोई मानक प्रचार-प्रसार (साहित्य, डॉक्योमेंट्री फिल्म) का प्रयास किया गया है।
ध्यात्व्य है कि यह स्थल भारत की गौरवशाली परंपराओं में से एक वन संपदा संरक्षण का केन्द्र बिन्दु रहा है। तो क्यों न हम भारतीय इस केन्द्र बिन्दु को विकसित कर भारत भ्रमण पर आने वाले शैलानियों व देसी पर्यटकों को इस गौरवपरंपरा(पर्यावरण संरक्षण) से जोड़ने का प्रयास कर वैश्विक पटल पर पर्यावरण संरक्षण के प्रति सजगता भरें।।