प्रकृति प्रेम : जय खीचड़
जीवन आधार जय, प्रकृति प्रेम समाहार ।
प्रकृति पहले देह दे, अनेक खाय प्रहार । ।
प्रकृति के पूर्वागामी वैज्ञानिक श्री जाम्भोजी ने सम्पूर्ण जगत के चराचर जीव के कल्याण से औतप्रोत 29 नियम की आचार संहिता बिश्नोइयों की जीवन शैली से जोड़ा । जाम्भोजी ने मनुष्य और प्रकृति में सखा भाव (आपात सहायक व्यवहार) का बीज बोया ।
रहिमजी ने ठीक ही कहा है:
जलहिं मिलाय रहिम ज्यों,
कियो आपु सम छीर ।
अंगवहि आपुहि आप त्यों,
सकल आंच की भीर । ।
इसी सखा भाव से जनित अद्वितीय दृष्य खेजड़ली में साकार हुआ । जो विश्व को प्राकृतिक संपदा संरक्षण से जोड़ने की सुदूर परंपरा की व्यवस्थित सुरुवार त में प्रथम कदम था । वह आज भी मरूधरा में प्राकृतिक संपदा को अक्षुण रूप में संजोए अपना स्थान बनाए हुए है ।
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