बिश्नोई समाज और पर्यावरण संरक्षण
प्रकृति मानव जीवन का आधार है। प्रकृति के वास्तविक रूप को सुशोभित करते पेड़-पौधे व वन्य जीव जन्तु ही इसके संतुलन का मूल है। मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति जीवन पर्यंत इसी जीवन आधार से होती है। वन्य जीव-जन्तु प्रकृति के अभिन्न अंग है। पर्यावरण संतुलन व प्रकृति के वास्तविक रूप को बनाए रखने के लिए वन व वन्य जीवों का सह अस्तित्व अति आवश्यक है। वर्तमान प्रौद्योगिकी युग में पर्यावरण प्रदूषण ज्वलंत समस्या है। पर्यावरण में आ रहे बदलाव से समस्या केवल भारत में ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व में विद्यमान है।
आज यह सभी स्तरों पर पूर्णतया स्वीकार किया जा रहा है कि पर्यावरण में विकृतियोँ (ग्लोबल वॉर्मिँग से उत्पन संकट) का प्रमुख कारण मनुष्य की अनिश्चित आवश्यकताएँ है जिनकी पूर्ति से किसी न किसी रूप में प्राकृतिक संपदा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। उद्योगिकरण के चकाचौंध में अंधे होते मनुष्य की असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति से परिलिक्षित स्वार्थी भावना ने इस समस्या को अत्यधिक जटिल स्वरूप प्रदान कर दिया। इस समस्या का पूर्णतः निराकरण तो संभव नहीं परन्तु अधिकाधिक वृक्षारोपण से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। प्रकृति के पूर्वागामी वैज्ञानिक अध्यात्मा श्री गुरु जांभोजी ने आज से 528 वर्ष पूर्व ही प्रकृति की आधार महत्ता को मान बिश्नोई आचार संहिता व मानव जगत के प्रति अपने दिव्योपदेश (शब्दवाणी) के द्वारा प्रकृति संरक्षण को जीवनवृत्ति से जोड़ा।
जांभोजी के अनुयायी बिश्नोईयों ने प्रकृति संरक्षण को अपने जीवन शैली का आधार माना। बिश्नोई लोग अपने श्रध्येय गुरु के प्रति अनंत श्रद्धा रखते है जिसका उदाहरण बिश्नोई समाज की स्थापना से लेकर अबतक बिश्नोईयों ने आवश्यकतानुरुप अपने शीर्ष मस्तकों को अर्पित कर प्रकृति की रक्षा कर दिये है। जांभोजी की वाणी प्रकृति संरक्षण की गौरव परंपरा की वास्तविक प्रतिपादक है जिसमें जांभोजी ने कहा है पेड़-पौधे में भी जीवात्मा का वास है और संसार के समस्त जीवों के प्रति दया भाव रखते हुए अहिंसा व सदाचरण युक्त जीवन जीना ही इस संसार में रहने की उत्तम विधी है। इसी गौरव परंपरा का निर्वहन करते हुए असंख्य बिश्नोईयों ने जीव ( वृक्ष, वन्यजीव ) रक्षार्थ अहिंसात्मक रूप से आत्मोसर्ग किया। प्रकृति के प्रति प्रेम की भावना ही पर्यावरण संरक्षण का मूल है वही मानव-प्रकृति प्रेम मनुष्य के अस्तित्व को सुरक्षित रखने में सफल हो सकता है।
पर्यावरण संरक्षण में वृक्षों की महत्ता : बिश्नोई समाज
लेखक के बारे में