खेजड़ली बलिदान री अमर गाथा
विश्व अनोखी घटना भई।
जद जोधाणे राजा फरमाई।।
नुवों भूवन बणाणो है ।
चुनो भी पकणो है।।
बिश्नोईयां रे ठोर रूंख घणां।
कहे मंत्री, बठे जावां जणां।।
जद मंत्री खेजड़ले आयो।
नगाड़े सूं फरमाण सुणायो।।
अभेसिंह रो हुकम बड-भारी।
म्हें काटालां व्रखां सारी।।
कहे अणदो, रूंख ना घावो बठे।
जंभ अनुयायी रह’रिया जठे।।
म्हाने पंथ श्रेष्ठ है प्यारो।
रूंख बदले ल्यो सिर म्हारो।।
गिरधर बांगी एक न सुणी।
बोल्यो अठरो म्हें हूं धणी।।
घणी हुय्गी बातां थारी।
अब है सेनिकां गी बारी।।
सैनिको थे हरिया रूंखा न काटो।
बिचम कोई आव तोकुल्ड़ी हा ना डाटो।।
आ सुण सैनिकां कुल् हा ड़ी उठाई।
रूंख माथे चाल्यां सूं पहलां, लिपटगी
एक लुगाई।।
उणरो नाम थो अमृता बाई।
रूंख-सह कट्’र मुक्ति बण पाई।।
पाछे रूंखा सूं लिपटग्या सग्ला जम्भ-अनुयायी।
रूंखा गे साथे कटग्या 363 लोग-लुगाई।।
सैनिक बोल्या, बस घणो जुल्म हुयिग्यो।
मंत्री गे लारे पाप भारी करदियो।।
सैनिक राजा ने बात बताई।
स्नानी जान दी रूंखा तांई।।
राजा बोल्यो, जुल्म कर दीनो।
मंत्री, घट पाप भर लीनो।।
बिश्नोईयां न रूंख जान सूं प्यारा।
बांरो धर्म जगम सब सूं न्यारा।।
राजा जाय’र ताम्र पत्र दीनों।
उण उपर ओ लिख दीनों।।
जठ जठ बिश्नोई रह'व्य ।
बठे रूंख कोई ना घावे।।
केवे 'जय' बिश्नोई अमर गाथा।
जग सुखी जद व्रखांरा साथा।।
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