जीव प्रेमी बिश्नोई
जिण भूमि बिश्नोई रेवे,
बठे वन’जीव रो ठोर।
जीव जगत सूं प्रेम रो,
दृष्टांत मिले नी ओर।।
रूंखा ताहीं सर देवे,
पंथ जगत मं जोर ।
रूंखा मं प्राण हुवे,
ज्यूं प्राण मनुरी डोर।
रूंख मिनख न सांसा देवे,
अठे रूंखारी सांस मिनख ठोर।
जीव जगत सूं प्रेमरो,
दृष्टांत मिले नी ओर।।
जीवां खातिर देह तजे,
बे पावे सुरगे ठोर।
जीव दया नित राखे,
बे मिनख मरूरा भोम।
देह तज जीव बचावे,
बे लेवे जन्म नी ओर।
जीव जगत सूं प्रेमरो,
दृष्टांत मिले नी ओर।।
वन’जीव रक्षीत रेवे,
बिश्नोईयां रे ठोर।
निरभै बठे विचरण करे,
के हिरण के मोर।।
जंभ कृपा सदा रेवे,
चाले धर्म री डोर।
जीव जगत सूं प्रेमरो,
दृष्टांत मिले नी ओर।।
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