पंथा में पंथ श्रेष्ठ
मध्य 15 सदी त्रसित भयो।
जद बंयालिसो काळ पङ्यो॥
लोग प्रदेश जाबा लाग्या।
जंभ गुरु मरु आग्या॥
कह्यो लोगां थे मरु ना छोड़ो।
लोग बोल्या अठे अन्न-जल रो तोङो॥
जीव-जंतु’र मानुष जीव सके न अठे।
म्हेँ सग्ळा तो जावां व्रखा हुयोङी जठे॥
कह्यो जंभ जद अचंभ भयो।
हे मरू वासिंदो!
अन्न-जल थाने मिललो अठे।
जे मरु ना छोड़ो कदे॥
सुण लोगां म अचरज भयो।
जद पूछे लोग लुगाई!
किण विध थे छलत भंडारू।
किण विध जलत उबारुं॥
कह्यी जंभ अचंभ री बातां।
जे थे मानो म्हारी बातां।
तो बदळला मरु रा पांथा॥
कार्तिक वदी अष्टमी जंभ विराजे सम्भराथले।
लोगां न लिया बुलाय कने॥
कहे जंभ लोगां सूं लेज्यो थे अनाज।
थां सग्ळा न पाहल दे पंथ बणाऊं आज॥
जंभ अचंभ सूं किन्हा उपकारा।
अकाल टार अन्न दिया बहुसारा॥
क्या जोगी क्या सन्यासी नाथा।
सब गुरु का लीन्हा साथा॥
नव अरु बीस नेम झलाया।
बां सग्ळा न बिश्नोई बणाया॥
कह्यो जांभोजी थे बिश्नोई हुआ।
रह्यो सदा थे नेमा जुवां॥
जे इण नेमा थे चालोला।
कदई दुःख दरिद्र नी पावोला॥
एक नाम विष्णु जप्यो।
पायो जामण-मरण छुटकारो॥
जीव दया नित राखो।
व्रख कद नी घावो॥
करमा-गौरा मान्यो गुरु फरमाणो।
व्रखां तांही तज्यो संसारो॥
2 सदी बाद भयो अंधकारो।
363 स्नानीयां व्रखां तांही तज्यो संसारो॥
जीव दया नित राख अरु मान गुरु फरमाणो।
वन’जीव तांही तजी काया निहाल, गंगो, बीरबल, शैतानो॥
पंथा म पंथ बणयो पंथ श्रेष्ठ।
बलिदाना म खेजङली खड्णो है ज्येष्ठ॥
केवे “जय” पंथ श्रेष्ठी गाथा।
रेवे गुरु अरु वन’जीव रा साथा॥
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