निर्माता/निर्देशक श्री रवींद्र बिश्नोई ने समाज में आ रही निरंतर सामाजिक/नैतिक आचरण में निम्नता और समय के साथ बिश्नोईयों की सर्वदा पालनीय धर्म नियमों के पालन में आ रही शिथिलता को दूर करने के लिए फिल्म के माध्यम से नई क्रांति का आगाज किया है। फिल्म में लोहट जी की साधना से लेकर जांभोजी के धरा-आगमन (जंभ लीलाओँ), जांभोजी के चमत्कारों द्वारा दुष्ट लोगों को सद्मार्ग दिखाने, बिश्नोई समाज की स्थापना व गुरु जम्भेश्वर भगवान द्वारा प्रदत्त 29 धर्म नियम के बारे में विस्तृतापुर्वक बताया गया है।
चूँकि फिल्म को मुख्यत श्री गुरु जम्भेश्वर धाम जाजीवाल धोरा पर फिल्माया गया है जिसने निश्चित ही मेरे आर्टिकल "पशु प्रेम का अनुपम उदाहरण श्री गुरु जम्भेश्वर धाम जाजीवाल" को प्रत्यक्ष रूप से साकार किया है।
फिल्म समीक्षा : जय खीचड़ |
फिल्म में माता हांसा का पहनावा (शर पर चाँदी का बोरिया, सांकली व हाथों में कड़ा,चुङ व गले में टाडिया, हैँळी और पैरों में कङी, छिलकङी, नैवरी, हाटी और वस्त्र में कुङती-कांजळी नीचे धाबळो आदि दर्शकों को प्राचीन पहनावे से रूबरू करवाएगा।
फिल्म के आखिर में मेरी पसंदीदा आरती: "आरती जय जम्भेश्वर की" को बहुत ही अच्छे गायन के साथ दर्शकों के सामने रखा है।